सभा कुछ ऐसे लोग भी थे जो उनके विरोधी थे। एक विरोधी ने कहा, ‘स्वामीजी, आप हिंदुओं और भारत की प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं। आप बताइए क्या भारत के हिंदुओं ने कभी किसी दूसरे देश पर विजय प्राप्त की? बल्कि, दूसरे देशों के लोग ही उन पर हमला बोलते रहे।’ स्वामी जी सहज होकर बोले, ‘ऐसा मत कहिए श्रीमान। उन्होंने बेवजह कभी किसी दूसरे देश को कष्ट देने के लिए आक्रमण नहीं किया और न ही उन्हें अपने अधीन करना चाहा है। किसी भी देश का गौरव दूसरे देश को बंधक बनाने में नहीं, उसे मुक्त करने में है। महानता इस बात में है कि विश्व के किसी भी देश को बंधक बनाए बिना अपने देश की विशाल संस्कृति, महानता, साहित्य और सद्गुणों को दूसरे को बांटा जाए।’
स्वामी जी ने आगे कहा, जिस तरह पिंजरे में बंद पक्षी घुटन और दर्द का अहसास करता है, वही हाल पराधीन देश या व्यक्ति का होता है। इसके विपरीत पक्षी को पिंजरे से मुक्त करने में जो खुशी मिलती है, वही परोपकार और बंदी को मुक्त करने में मिलती है। यकीन नहीं तो आज ही किसी निर्दोष पक्षी को पहले पिंजरे में कैद करो और फिर उसे मुक्त करो। तुम्हें अंतर स्वयं समझ आ जाएगा कि किसमें अधिक सुख है?’ स्वामी विवेकानंद की बात पर सभा करतल ध्वनि से गूंज उठी और वह व्यक्ति सिर झुकाकर नीचे बैठ गया।– संकलन: रेनू सैनी