संकलन: बेला गर्ग
गांधीजी राष्ट्रीय आंदोलन और समाज सुधार संबंधी अपनी गतिविधियों के लिए समय-समय पर चंदा एकत्र करते थे, लेकिन इस कार्य में पूरी पवित्रता एवं पारदर्शिता बरती जाती थी। खुद महात्मा गांधी इस बात का ख्याल रखते कि चंदा देने वाले व्यक्ति के उद्देश्यों पर भी नजर रखी जाए और इस बात का भी कि दी गई रकम के साथ कोई बेजा शर्त न जुड़ी हो। वे यह भी सुनिश्चित करते कि चंदा देने वाला किसी गलतफहमी की वजह से तो ऐसा नहीं कर रहा।
जिन मामलों में दानदाताओं की किसी गलत मंशा का शक होता वे उस चंदे को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते थे, चाहे राशि कितनी भी बड़ी क्यों न हो। इसके विपरीत सही नीयत से चंदा देने वालों की छोटी से छोटी राशि भी वह पूरे सम्मान के साथ स्वीकार करते थे। एक बार की बात है, गांधी जी से मिलने कुछ लोग आए। उन लोगों ने बताया कि वे एक धार्मिक संगठन से जुड़े लोग हैं और उनका संगठन गांधीजी के प्रयासों को काफी अहमियत देता है। वह चाहता है कि गांधीजी को अपना काम आगे बढ़ाने में कोई आर्थिक कठिनाई न झेलनी पड़े।
गांधीजी उन लोगों की बात को गौर से सुन रहे थे। उनकी भावनाओं के लिए धन्यवाद कहते हुए उन्होंने बात आगे बढ़ाने को कहा। उन लोगों ने कहा, संगठन उन्हें काफी बड़ी राशि चंदे के रूप में देना चाहता है। बस शर्त इतनी सी है कि यह रकम हरिजनों और मुसलमानों पर खर्च न की जाए। बाकी किसी के लिए भी जैसे वह चाहें उस राशि का उपयोग कर सकते हैं। गांधीजी ने बहुत ही सहज भाव से कहा, ‘क्षमा कीजिए, अब तो मैं यह राशि बिल्कुल नहीं लूंगा। आप किसी और ऐसे व्यक्ति की तलाश कीजिए जो आपके चंदे का आपके अनुरूप इस्तेमाल कर सके। मैं जरूरतमंद इंसानों में इस तरह का भेदभाव नहीं कर सकता।’