हिंदुस्तान की आन के लिए शहीद हो गया इब्राहिम, बताया मुसलमान का अर्थ

संकलन: सतप्रकाश सनोठिया
पानीपत का तीसरा युद्ध समाप्त हो चुका था। मराठे हार चुके थे और अहमदशाह अब्दाली विजयी हुआ था। मराठों की तरफ से मशहूर तोपची इब्राहिम गार्दी ने अफगानी सेना को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया था। दुर्भाग्य से उसे जख्मी हालत में कैद कर लिया गया। अब्दाली ने आदेश दिया- ‘इब्राहिम को पेश किया जाए।’

सैनिक शुजाउद्दौला के शिविर में कैद इब्राहिम को लेने पहुंचे और वे अब्दाली की कठोरता का हवाला देकर उसे ले गए और अब्दाली के सामने पेश कर दिया। अब्दाली गरजा- ‘हैदराबाद के निजाम की नौकरी क्यों छोड़ी? इब्राहिम ने जवाब दिया- ‘उसका रवैया मेरे उसूलों के खिलाफ था।’ अब्दाली गुर्राया- ‘मुसलमान होकर फिरंगी जबान पढ़ी, निजाम की नौकरी छोड़ी और मराठों का साथ दिया? खैर, चलो मैं तुम्हें माफ करता हूं, तौबा कर लो।’ इब्राहिम ने कहा- माफी किस बात की? अब्दाली गरजा- ‘गुस्ताख! जानते हो किससे मुखातिब हो?’ ‘जानता हूं, आप एक लुटेरे हो, खुदा के फरिश्ते कतई नहीं’- इब्राहिम ने जवाब दिया।

अब्दाली ने कहा, ‘ताज्जुब है, मुसलमान होकर तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद की!’ इब्राहिम ने कहा- ‘तब तो आपको मालूम नहीं कि मुसलमान किसे कहते हैं। जो अपने मुल्क से घात करे, बेगुनाहों का खून बहाने में साथ दे, वह मुसलमान हरगिज नहीं!’ अब्दाली गुस्से से बोला- ‘क्या कुफ्र बकता है, तौबा कहो, नहीं तो तेरे जिस्म के हजारों टुकड़े होंगे। इब्राहिम ने मुस्कराते हुए कहा- ‘मेरे जिस्म के हजारों टुकड़े करके भी मेरी आत्मा को छू तक न पाओगे।’ अब कुछ नरमी दिखाते हुए अब्दाली ने कहा- ‘अच्छा हम तुम्हें तौबा करने लिए कुछ वक्त देते हैं। तुम्हें छोड़ देंगे और फौज में तुम्हें ऊंचा ओहदा भी दे देंगे।’ इब्राहिम ने कहा- ‘इंसानियत के लिए शहीद होने वाले कहीं तौबा करते हैं।’ इब्राहिम हिंदुस्तान की आन के लिए शहीद हो गया।