कान्हा उनके समीप आये और बोले अरे बाबा नीचे क्या कर रहे हो, लो मेरा हाथ पकड़ो और जल्दी से उपर चले आओ। जेसे ही सूरदास जी ने इतनी प्यारी सी मिश्री सी घुली हुई वाणी सुनी तो जान गए की मेरा कान्हा आ गया, और बहुत प्रसन्न हो गए, और कहने लगे की अच्छा कान्हा, बाल गोपाल के रूप में आ गए, कन्हाई तुम आ ही गए न?
बाल गोपाल कहने लगे अरे कौन कान्हा ? किसका नाम लेते जा रहे हो,जल्दी से हाथ पकड़ो और ऊपर आ जाओ, ज्यादा बातें न बनाओ।
सूरदास जी मुस्कुरा पड़े और कहने लगे: सच में कान्हा तेरी बांसुरी के भीतर भी वो मधुरता नहीं, माना कि तेरी बांसुरी सारे संसार को नचा दिया करती है लेकिन तेरे भक्तों का दुःख तुझे नचा देता है। क्यों कान्हा सच है न? तभी तो तू दौड़ा चला आया।
बाल गोपाल कहने लगे: अरे बहुत हुआ, पता नहीं क्या कान्हा-कन्हा किये जा रहे हो। मैं तो एक साधारण सा बालक ग्वाला हूँ, मदद लेनी है तो लो नहीं तो में तो चला, फिर पड़े रहना इसी गढ्ढे में।
जैसे ही उन्होंने इतना कहा सूरदास जी ने झट से कान्हा का हाथ पकड़ लिया और उस मंगलमय ब्रह्मसंस्पर्श से वे रोमांचित हो उठे।
कहने लगे: कान्हा तेरा ये दिव्य स्पर्श, तेरा ये सान्निध्य, ये सुर अच्छी तरह जनता हूँ। मेरा दिल कह रहा है कि तू मेरा श्याम ही है।
इतना सुन कर, जैसे ही आज चोरी पकडे जाने के डर से भगवान बलात अपना हाथ छुड़ाकर जाने लगे तब सूर ने कहा:
हस्तमुच्छिद्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भुतम् ।
हृदयात् यदि निर्यासि पौरुषं गणयामि ते ।
जिसका हिन्दी रूपांतरण छन्द इस प्रकार है:
बांह छुडाये जात हो, निबल जान जो मोहे
ह्रदय से जो जाओगे, सबल समझूंगा में तोहे
कुछ और जगहों पर इसका हिन्दी रूपांतरण निम्न प्रकार से है:
हाथ छुड़ाए जात हो, निवल जान के मोये ।
मन से जब तुम जाओगे, तब प्रवल माने हौ तोये ।
अर्थात – मुझे दुर्बल समझ यहाँ से बांह छुडा भाग जाओगे, लेकिन मेरे भक्ति रूपी मन से कभी नहीं निलकल पाओगे!
इस प्रकार भक्त-वात्सल्य भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम भक्त महात्मा सूरदास जी को इस विकट समस्या से उबारने के लिए स्वयं प्रगट हुए।