150 वर्षों से भी ज्यादा प्राचीन है मंदिर
यह मंदिर 150 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। श्री स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा है। आप अगर इस प्राचीन मंदिर के दर्शन करने का मन बना रहे हैं, तो आपको इस मंदिर का चमत्कार देखने के लिए सुबह से रात तक रुकना होगा, तभी आप मंदिर को जलमग्न होते हुए देख सकते हैं।
शिव के पुत्र कार्तिकेय ने स्थापित किया था मंदिर
इस मंदिर के स्थापित होने के पीछे एक पौराणिक कहानी है। ताड़कासुर नाम का एक राक्षक हुआ करता था, जो भगवान शिव का भक्त था। उसने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करके एक दुर्लभ वरदान मांगा। ताड़कासुर ने वरदान मांगा कि उसे अमरता का वरदान चाहिए। यह सुनकर भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा कि इस संसार में किसी को भी अमरता का वरदान नहीं मिल सकता। यह सुनकर ताड़कासुर ने कहा कि ठीक है, अगर उसे अमरता का वरदान नहीं मिल सकता तो उसे यह वरदान चाहिए कि इस संसार में कोई भी उसका संहार ना कर सके, सिवाय भगवान शिव के पुत्र के। अपनी बुद्धि लगाते हुए ताड़कासुर ने कहा कि भगवान शिव के पुत्र की आयु 6 दिन ही होनी चाहिए। भगवान शिव ने ताड़कासुर को यह वरदान दे दिया। भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद ताड़कासुर का आंतक बढ़ने लगा था। वो चारों तरफ उत्पात मचाने लगा था। ताड़कासुर से परेशान होकर सभी देवगण और ऋषि-मुनि मिलकर भगवान शिव के पास गए और वहां जाकर उनसे ताड़कासुर का वध करने के लिए प्रार्थना करने लग गए। भगवान शिव ने इस विपदा को समझा और इसके बाद श्वेत पर्वत कुंड से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। भगवान शिव के पुत्र जन्म से ही प्रतापी थे, इसलिए उन्हें ताड़कासुर को मारने में कोई कठिनाई नहीं हुई और भगवान कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध करके सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को उसके पाप कर्मों से मुक्ति दिला दी।
भगवान शिव ने सुनी भक्तों की पुकार
भगवान शिव ने इस विपदा को समझा और इसके बाद श्वेत पर्वत कुंड से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। भगवान शिव के पुत्र जन्म से ही प्रतापी थे, इसलिए उन्हें ताड़कासुर को मारने में कोई कठिनाई नहीं हुई और भगवान कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध करके सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को उसके पाप कर्मों से मुक्ति दिला दी।
पश्चाताप के लिए कार्तिकेय ने बनवाया भगवान शिव का मंदिर
जब भगवान कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शिव का परम भक्त था, तो अपने हाथों एक शिवभक्त की हत्या होने का उन्हें बहुत ही दुख हुआ। उन्हें दुखी और अपराधबोध से ग्रस्त देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें इस पाप से मुक्ति का मार्ग बताते हुए कहा कि जहां उन्होंने ताड़कासुर का वध किया है, वहां शिवलिंग की स्थापना करें। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। इस कारण मंदिर का नाम स्तम्भेश्वर महादेव का मंदिर पड़ गया। आप अगर मंदिर के गायब होने की वजह के बारे में सोच रहे हैं, तो हम आपको बता देते हैं। समुद्र में होने के कारण जब-जब पानी का स्तर काफी बढ़ जाता है, तो यह मंदिर समुद्र में समाकर दिखना बंद हो जाता है लेकिन जैसे-जैसे समुद्र के पानी का स्तर घटता जाता है, यह मंदिर फिर से दिखाई देने लग जाता है। आप भी अगर इस अनोखे मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको एक दिन तो यहां रुकना पड़ेगा। तभी आप मंदिर के चमत्कार को खुद देख पाएंगे। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन वही लोग कर पाते हैं, जिन्हें भगवान शिव ने खुद चुना होता है। माना जाता है कि अगर आपके हाथों कोई भूल या पाप हो गया है, तो यहां आकर आप प्रायश्चित कर सकते हैं। यहां आने वाले शिवभक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।