लाइफ गुरु सुरक्षित
बनारस में हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय विचार कर रहे थे, उसी दौरान जब वो त्रिवेणी संगम पर कुंभ के मेले में थे। वहां उन्होंने लोगों को बताया कि वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं, तब यह सुनकर एक वृद्ध महिला सामने आई और योगदान स्वरूप एक पैसा दिया। वहीं से पंडित मालवीय को चंदा इकट्ठा करने की प्रेरणा मिली। उसके बाद वो भारत भ्रमण कर चंदा इकट्ठा करने लगे। चंदा इकट्ठा करने के लिए वो किसी तरह की शर्म नहीं करते थे, बल्कि बड़े फक्र से सभी को बताते थे।
इसी दौरान वो हैदराबाद पहुंचकर वहां के निजाम से मिले। निजाम ने कहा में हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए चंदा क्यों दूं? निजाम ने मदद देने से बिलकुल मना कर दिया, लेकिन मालवीयजी हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने चंदा लेने की जिद्द की, तो निजाम ने कहा कि मेरे पास तुमको देने के लिए केवल मेरी जूती है, यदि लेनी हो तो बताओ। मालवीयजी ने कहा ठीक है, आप जूती ही दे दीजिए। अब महामना चुपचाप निजाम की जूती लेकर हैदराबाद के चारमीनार बाजार पहुंचे और जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगे, ‘निजाम की जूती नीलाम हो रही है, आओ-आओ!’ भीड़ जुटने लगी, तभी निजाम की मां चारमीनार के पास से बग्घी में गुजर रही थीं।
भीड़ देखकर उन्होंने पूछा, तो पता चला कि कोई निजाम की जूती 4 लाख रुपये में नीलाम हो रही है। मां को लगा कि बेटे की जूती नहीं, बल्कि शहर के बीचो-बीच इज्जत नीलाम हो रही है। उन्होंने फौरन निजाम को सूचना भिजवाई। निजाम को भी बड़ा आश्चर्य हुआ और वो पंडित मालवीय की बुद्धिमत्ता का कायल हो गया। निजाम ने पंडितजी को बुलवाया और शर्मिंदा होकर एक बड़ा दान दिया। पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक महामना ने विश्वविद्यालय के लिए करीब एक करोड़ 64 लाख रुपये का चंदा इकट्ठा किया था।
नोट: जब कोई शुभ कार्य और सभी की भलाई के लिए संकल्प लिया जाता है, तब पूरी प्रकृति उस संकल्प को करने में लग जाती है।