Dussehra Puja 2020 : जानिए विजयादशमी पर रावण दहन और शमी पूजन का महत्व

हमारे त्योहार प्रतीकात्मक हैं। मूल प्रयोजन कुछ और ही हैं। यह किसी उत्सव से ज्यादा एक नसीहत प्रतीत होते हैं। विजयादशमी, हमारी दस इंद्रियों यानी पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों पर विजय पाने की अवधारणा का पर्व है। इन 10 गणों पर नियंत्रण का ही नाम विजयादशमी है। किसी लंकापति के पुतले के आज दहन से तात्पर्य हमारी आंतरिक नकारात्मकता के दहन के सिवा कुछ भी नहीं है। राम और प्राचीन रमन (अर्थात आज का रावण) हमारे अंतस की दो प्रवृत्तियां हैं। हमारे पर्व किसी वर्कशॉप या क्लासरूम के सबक की मानिंद प्रतीत होते हैं। इसकी शिक्षा यदि जीवन में उतार ली जाए, तो स्वयं की क्षमता को उत्कर्ष पर पहुंचा कर निश्चित रूप से जीवन में आमूलचूल परिवर्तन का सूत्रपात और उससे लाभ संभव है।

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मुख्य कारक था शमी पूजन
विजयादशमी में शमी वृक्ष का पूजन इस पर्व को अत्यधिक धार प्रदान करने के साथ वाद-विवाद, आक्रमण और द्यूत सहित चहुंओर विजय सुनिश्चित करता है। कौरवों की द्यूत में जीत के पीछे शमी पूजन मुख्य कारक था। श्रीकृष्ण ने यह रहस्य जानकर पांडवों को भी शमी का पूजन करा कर उन्हीं के अस्त्र से उन्हें पटखनी दे दी।

राम पूजन में शमी बना साक्षी
अर्जुन ने अज्ञातवास में अपने अस्त्र गांडीव को पूरे वर्ष शमी वृक्ष पर रखा, जिससे गांडीव म में मारक हथियार में रूप में शत्रुओं में खौफ का सबब बन गया। कहते हैं कि श्रीराम ने जब विजय मुहूर्त में पूजन कर लंका पर आक्रमण किया, तो शमी वृक्ष स्वयं विजय मुहूर्त में इस पूजन का साक्षी बना। परंपराओं की चादर में दही के साथ मिष्ठान इस दिन को और भी अधिक प्रभावी बनाते है। कहीं-कहीं पूजन में दही के संग जलेबी अर्पित कर उसके प्रसाद ग्रहण का भी रिवाज है।

स्वयं पर विजय पाने वाला ही दशरथ
देवी जया और विजया का पर्व विजयादशमी यानी दशहरा दरअसल नवरात्र के 9 पावन दिनों के पश्चात् खुद पर विजय पाकर स्वयं के पुनर्परिचय का महाकाल है। विजयादशमी अपने ही भीतर के सप्त सुप्त चक्रों पर आसीन 9 ऊर्जाओं और अपनी बाह्य शक्ति से 9 गुनी अधिक आंतरिक क्षमता के बोध से सर्वत्र विजय की महाअवधारणा है।

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दस से अभिप्राय है दस इंद्रियां
नवरात्र के 9 दिन की साधना के पश्चात् स्वयं पर काबू पाकर विजय की दशमी अर्थात् विजयादशमी का सूत्रपात संभव है। मूल भाव है कि स्वयं को जीते बिना जगत को या किसी को भी जीतेंगे कैसे। अश्विन माह की दशमी को तारा उदय होने से सर्व कार्य सिद्धि दायक योग बनता है। लिहाजा स्वयं की दसों इंद्रियों पर विजय के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है। दशहरा और दशरथ एक जैसे शब्द हैं। दस से अभिप्राय है दस इंद्रियां। इन्हीं इंद्रियों यानी स्वयं पर विजय पाने वाला ही दशरथ कहलाता है।- सदगुरुश्री स्वामी आनन्द जी