गोपाष्टमी (Gopashtami Complete Vrat Katha) के दिन पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ी जाती है, व्रत कथा पढ़ने के बाद ही व्रत पूरा माना जाता है। आइए जानते हैं गोपाष्टमी की व्रत कथा-
Gopashtami Vrat Katha : गोपाष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक बार, जब बालक कृष्ण 6 वर्ष के थे, तो उन्होंने माँ यशोदा से कहा: “माँ, अब मैं बड़ा हो गया हूँ और अब बछड़े नहीं चराऊँगा।”
तब यशोदा ने मामला नंदू बाबा को सौंपते हुए कहा कि सब तो ठीक है, लेकिन एक बार बाबा से पूछ तो लो।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने जाकर नंदबाबा से कहा कि अब मैं बछड़ों की जगह गायें चराऊंगा। नंद बाबा ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन बाल गोपाल की जिद के आगे उनकी एक न चली। तब नंद बाबा ने कृष्ण से कहा कि यदि सब कुछ ठीक है तो पहले जाकर पंडित जी को बुलाओ ताकि वह उनसे गाय चराने का शुभ समय पता कर सकें।
यह सुनकर बाल गोपाल पंडित जी के पास आए और उनसे कुछ कहा। “पंडित जी, नंद बाबा ने आपको गाय चराने का सही समय जानने के लिए बुलाया है।” यदि आप मुझे आज का शुभ मुहूर्त बताओ तो मैं तुम्हें ढेर सारा मक्खन दूँगा।
पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुँचे और पंचांग देखकर उन्होंने यह घोषणा की कि आज के दिन गौ-पालन का शुभ मुहूर्त है और यह भी कहा कि आज से एक वर्ष तक गौ-पालन के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं रहेगा।
नंद बाबा ने पंडित जी की बात पर विचार किया और बाल गोपाल को गाय चराने की अनुमति दे दी। उस दिन से भगवान गायें चराने लगे। जिस दिन बाल गोपाल ने गायें पालना शुरू किया वह दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। इसे गोपाष्टमी इसलिए कहा गया क्योंकि इस दिन भगवान ने गायें चराना शुरू किया था।
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