अजित कुमार मिश्रा
दुनिया के तमाम धर्मों और समाजों में पथ-प्रदर्शकों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती रही है। उस व्यक्ति की वंदना की जाती रही है जो हमें अपने जीवन के उद्देश्यों से अवगत कराए, हमें जीवन की सार्थकता का बोध कराए, हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बनाए। उस पथ-प्रदर्शक को कहीं ईसाई धर्म में मास्टर कहा गया है तो इस्लाम में पीर, तो सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में गुरु की उपमा दी जाती रही है। समस्त धर्मों में गुरु को माता-पिता से भी ऊंचा स्थान मिला है, लेकिन भारत में ही शुरू धर्मों के द्वारा आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु की पूजा करने की प्रथा शुरू हुई।
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इस तरह बढ़ाया मान
आषाढ पूर्णिमा के दिन भारत में गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन अपने गुरु की पूजा की जाती है और उनसे मार्गदर्शन लिया जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के लिए क्यों चुना गया, इसके पीछे भी एक महान दर्शन है। आषाढ़ मास के दिन आसमान में बादल घिरे रहते हैं और उन्ही बादलों के बीच से चंद्रमा अपनी रोशनी बिखेरता है। ठीक उसी तरह जैसे अज्ञान रूपी बादलों से उत्पन्न मन के अंधेरे को गुरु रूपी चंद्रमा का शीतल प्रकाश खत्म कर देता है। गुरु की महानता की वजह से उन्हें तुलसी ने ‘गुरु शंकर रुपिणे’ कह कर उनका मान बढ़ाया है।
गुरु को दिया गया है यह स्थान
गुरु की महत्ता सगुण-निर्गुण में ही नहीं, नास्तिक, न्याय और सांख्य परंपरा में भी उतनी ही रही है। यहां तक अवैदिक बौद्ध, सिख और जैन परंपराओं में भी गुरु को ईश्वर तुल्य स्थान दिया गया है। इसकी वजह यह है कि गुरु ज्ञान का स्रोत है। बिना ज्ञान के मनुष्य पशु के समान है। माता-पिता जन्म तो देते हैं, लेकिन ज्ञान लब्ध और लक्ष्य से परिपूर्ण बनाने का कार्य गुरु ही करता है। वही हमें ईश्वर से परिचय कराता है और प्रकाश रूपी ईश्वर की तरफ ले जाता है।
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सेवा का यह मिलता है फल
भारत में गुरु-शिष्य की महान परंपरा रही है। ऋषि संदीपन और शिष्य भगवान कृष्ण, विश्वामित्र और श्री राम, द्रोणाचार्य और अर्जुन के बारे में सब जानते हैं, लेकिन ऋषि धौम्य के शिष्यों आरुणि, उद्दालक और उपमन्यु को जो स्थान अपने गुरु की सेवा से मिला, वह सनातन धर्म में सर्वोत्कृष्ट है।
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अन्य धर्मों में भी है गुरु-शिष्य की कहानी
सूफी इस्लाम में भी जिन महान गुरु-शिष्यों की परंपरा भारत में प्रसिद्ध रही है वे हैं: मोइनुद्दीन चिश्ती और उनके शिष्य कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, काकी के शिष्य निजामुद्दीन औलिया, औलिया के शिष्य अमीर खुसरो। अमीर खुसरो की गुरु भक्ति के बारे में तो कहा जाता है कि वह अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के निधन से इतने व्यथित हो गए थे कि उनके साथ ही यह कहते हुए चल बसे कि ‘गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस, चल खुसरो घर आपने, अब रैन भई चहुं देस।’