Holi Spiritual Significance : रंगों के साथ मन के विकारों को बाहर फेंकने का अध्यात्मिक पर्व है होली

होली का पर्व, दो महापर्वों के ठीक मध्य घटित होने वाला पर्व है। होली से लगभग पंद्रह दिन पूर्व ही सम्पन्न होता है महाशिवरात्रि का पर्व और पंद्रह दिन बाद आती है चैत्र नवरात्रि। शिव और शक्ति के ठीक मध्य का पर्व और एक प्रकार से कहा जाए तो शिवत्व के शक्ति से सम्पर्क के अवसर पर ही यह पर्व आता है। जहाँ शिव और शक्ति का मिलन है वहीं ऊर्जा की लहरों का विस्फोट है। होली जहाँ एक ओर हर्ष और उल्लास का त्योहार है, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक दृष्टि से भी इस पर्व का बहुत अधिक महत्व है। होली की रात्रि सिद्धिदायक रात्रि होती है। इस रात्रि में तंत्र-मंत्र एवं साधनाओं का विशेष रूप से रुझान होता है क्योंकि इस रात्रि में सम्पन्न की गई छोटी-से-छोटी साधना एवं प्रयोग भी जीवन को बदल देने में सक्षम हैं, रंग विहीन जीवन में रंग भरने में सक्षम हैं।
होली का शाब्दिक अर्थ हो-ली अर्थात् जो हो चुका है अर्थात् “बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले”, पिछले वर्ष जो अच्छा/बुरा हुआ उसे भूल जा, संवतसर के रूप में हिन्दु नववर्ष के लिए नए लक्ष्य निर्धारित कर भावी जीवन को सफल बनाने का प्रयत्न करें। ऐसी ही होनी चाहिए होली और ऐसा ही होना चाहिए होली का रंग, प्रेम का सुरूर इस कदर चढ़ा हो कि और कोई रंग न चढ़े, कोई दूसरा रंग मन को भाए ही नहीं। आस हो तो एक बात की, शिकायत हो तो एक ही बात की, प्रार्थना हो तो एक बात की, निवेदन हो तो एक ही बात का कि मुझे अपने ही रंग में रंग दे, ऐसे रंग दे कि किसी और रंग की जरूरत ही न रहे, ऐसे रंग दे कि कोई मुझे पहचान न सके, इतना रंग दे कि दूसरे रंग लगने की जगह ही न बचे। हे प्रभु, तू मुझे अपने रंग में ऐसे मिला दे कि मैं, मैं न रहूँ, कुछ और नूतन हो जाऊँ। सबको मुझमें तेरी झलक मिले, मेरे चेहरे का रंग तुम्हारी आभा से जा मिले। होली के बहाने दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं।

प्रमुख तौर पर होली का त्योहार प्रहलाद से संबंधित है। प्रहलाद हिरण्यकश्यप का पुत्र और विष्णुभक्त था। हिरण्यकश्यप प्रहलाद को विष्णु पूजन करने से मना करता था। उसके विष्णु भक्ति न छोड़ने पर राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए, पर उसका बाल भी बांका न हुआ। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने उस वरदान का लाभ उठाकर लकड़ियों के ढेर में आग लगवाई और प्रहलाद को बहन की गोद में देकर अग्नि में प्रवेश की आज्ञा दी। होलिका ने वैसा ही किया। दैवयोग से प्रहलाद तो बच गया, पर होलिका जलकर भस्म हो गई। अतः भक्त प्रहलाद की स्मृति तथा असुरों के नष्ट होने की खुशी में इस पर्व को मनाते हैं। कुछ लोग होली के इस पर्व को कामदेव के दहन के बाद से मनाने की प्रथा मानते हैं। कहते हैं कि कामदेव को भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि में जलाकर भस्म कर दिया था, तभी से इस पर्व का प्रचलन शुरू हुआ था। होली पर्व पर घर के दुःख दारिद्रय रूपी विकारों को जीवन से निकाल बाहर फेंक देने का पर्व है। केवल रंग एक-दूसरे के ऊपर फेंकने से, अपशब्द इत्यादि बोलकर मन के विकार निकाल देने से होली नहीं मनाई जा सकती है। वास्तविक होली तो वह है कि आपके आन्तरिक जीवन में सप्तरंगी इंद्रधनुष स्थापित हो और आप जीवन के सभी रंगों का निरंतर अनुभव करते हुए आनन्दयुक्त जीवन जी सकें।