दरअसल, हिरण्यकश्यप को ब्रह्माजी से वरदान मिला था की कोई भी उसे धरती पर, आसमान में, न भीतर, और न बाहर, न सुबह और न रात में, न देवता, न कोई जानवर, न कोई असुर और न ही कोई मनुष्य। इसी वरदान के चलते वह प्रह्लाद को भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए प्रह्लाद को प्रताड़ित किया करता था।
बिहार के पूर्णिमा जिले में मौजूद प्रह्लाद स्तंभ
भगवान विष्णु के चौथे अवतार नृसिंह भगवान ने हिर्णयकश्यप क संहार किया था। उन्होंने आधे नर और आधे सिंह का अवतार लेकर उसका वध किया था। मान्यताओं के अनुसार, बिहार के पूर्णिमा जिले में वह मंदिर स्थित है जहां पर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां आज भी वह स्तंभ मौजूद है जहां पर नृसिंह भगवान ने अवतार लिया था। यही वह स्थान है जाहं हिरण्यकश्यप को प्रह्लाद ने अपने नाखूनों से चिर दिया था।
यूपी के हरदोई में प्रह्लाद स्तंभ
इसे लेकर एक दूसरी कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार, कहा जाता है कि भगवान नृसिंह का अवतार यूपी के हरदोई में हुआ था। कहा जाता है कि भगवान नृसिंह प्रकट हुए थे। यह एक कुंड भी है जो प्रह्लाद कुंड के नाम से प्रचलित है। यहां पर होलिका जलकर राख हुई थी। इसी कारण इस स्थान का नाम पहले हरिद्रोही था।
मुलतान में भी है प्रह्लाद का स्तंभ
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, कहा यह भी जाता है कि मुल्तान जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है वहां प्रह्लाद से जुड़ा एक मंदिर है जहां एक स्तंभ मौजूद है जहां प्रह्लाद को बांधा गया था और यहां पर ही नृसिंह भगवान ने अवतार लिया था। ऐसा कहा जाता है कि मुल्तान कभी प्रह्लाद का जन्मभूमि हुआ करती थी और यहां पर भगवान विष्णु का भव्य मंदिर प्रह्लाद ने ही बनवाया था।