इस तरह होता होली की आग से निकलने का चयन
मथुरा के कोसीकलां के फालैन गांव में कई दशकों से जलती हुई होलिका की आग के बीच से पंडा के निकलने की परंपरा रही है। जिस वक्त पंडा परिवार के सदस्य मोनू पंडा जलती हुई आग से निकलते हैं तो पूरा होलिका मैया और भक्त प्रहलाद के जयकारे गूंजने लगते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, यहां होली की आग से निकलने की परंपरा चली आ रही है। ऐसा नहीं है कि कोई एक व्यक्ति ही इस परंपरा को निभाता है। अगर कोई व्यक्ति इस परंपरा को निभाने में असमर्थता जताता है तो वह पूजा की माला को मंदिर में रख देता है। दरअसल पूजा की माला को भक्त प्रहलाद की माला कहते हैं। जब कोई उस माला को मंदिर से उठा लेता है, तब वह जलती हुई आग से निकलता है।
माला के साथ निकलते हैं होली की अग्नि से
होलिका दहन के दिन धधकती आग से जब पंडा निकलता है तो उस समय होली के आसपास खड़ा रहना संभव नहीं हो पाता लेकिन पंडा उस माला के साथ बिना किसी नुकसान के होली की अग्नि के बीच से निकल जाता है। होलिका दहन के दिन आसपास के गांव के लोग उपले लेकर आते हैं और करीब 10-15 फीट ऊंची होली रखी जाती है। शुभ मुहूर्त के समय पंडा पहले प्रहलाद कुंड में स्नान करता है और उसके बाद धधकती हुई आग के बीच से निकलता है।
फालैन गांव से जुड़ी है यह मान्यता
ग्रामीणों के अनुसार, फालैन गांव के एक पंडा को सपना आया कि डूंगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति है। सपने के बाद पंडा परिवार के सदस्यों ने साधु-महात्माओं के आशीर्वाद से खुदाई शुरू की, जिसमें भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति निकली। इसके बाद भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद का मंदिर बनाया गया और पूजा के दौरान माला पहनाई गई। उस माला को पहनकर कुछ लोग आग से बच गए थे, तभी से गांव में होली की आग की आग के बीच में से निकलने की परंपरा शुरू हुई। पंडा परिवार के 20 लोग ही होलिका में निकलने की परंपरा निभाते हैं। होली के एक महीने पहले ही पंडा का चयन किया जाता है। इस बार मोनू पंडा इस परंपरा को निभाने जा रहे हैं।
इस तरह शुरू होती हैं तैयारी
होलिका दहन से एक महीने पहले ही इसकी तैयारियां की जाती हैं और पंडा का चयन किया जाता है। इस दौरान आग से निकलने वाला पंड़ा मंदिर में कठिन तप व साधना करते हैं। वह एक महीने तक व्रत करते हैं और सिर्फ जल, लौंग व बताशे का सेवन करते हैं। साथ ही घर-परिवार से दूर रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। इस दौरान मंदिर में हर रोज पूजा-अर्चना की जाती है और हवन होता रहता है। इतना ही नहीं होली में से निकलने से पहले तीन दिन तक सोते भी नहीं हैं।