महाभारत के युद्ध से जुड़ा है सम्बध
महाभारत के युद्ध में कौरव-पांडव युद्ध लड़ रहे थे। यह सूचना जब घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक तक पहुंची, तो अपनी माता से कहा कि वे भी कुरुक्षेत्र में चल रहे युद्ध में शामिल होना चाहते हैं। यह सुनकर उनकी मां ने कहा कि बर्बरीक तुम असीम शक्तियों को धारण करने वाले हो, इसलिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कभी भी किसी निर्बल पर मत करना या फिर उस दल पर मत करना, जो हार रहा हो। तुम हारे हुए को सहारा देना, इसका मतलब है कि जो पक्ष हार रहा हो, तुम्हें उसका साथ देना है। यह सुनकर बर्बरीक युद्ध भूमि पर पहुंच गए। श्रीकृष्ण को पता था युद्ध में कौन हारेगा, इसलिए श्रीकृष्ण यह बात भी जानते थे कि बर्बरीक किसका साथ देने वाले हैं। बर्बरीक को कौरवों का साथ देने से रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उनका शीश दान में मांगा। ब्राह्मण द्वारा ऐसा दान मांगने पर बर्बरीक समझ गए कि यह कोई देवता हैं, जिन्होंने किसी कारण से ऐसा दान मांगा है। बर्बरीक ने ब्राह्मण देव से उनके असली रूप में आने के लिए कहा। श्रीकृष्ण अपने रूप में आए, तो बर्बरीक उनके दर्शन पाकर प्रसन्न हो गए और श्रीकृष्ण को फाल्गुन मास की द्वादशी के दिन अपना शीश काटकर दान में दे दिया।
कलयुग में हारे हुए का सहारा हैं खाटू श्याम
भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि बर्बरीक कितने शक्तिशाली योद्धा हैं, इसलिए उन्होंने बर्बरीक के शीश को उठाकर अमृत कलश में डाल दिया, जिससे कि बर्बरीक अमर हो गए। इसके बाद उन्होंने पूरे युद्ध को देने की इच्छा जताई। श्रीकृष्ण ने उनके सिर को सबसे ऊंची पहाड़ी पर रख दिया, जिससे कि बर्बरीक पूरे युद्ध को देख पाएं। साथ ही बर्बरीक के समर्पण भाव को देखकर श्रीकृष्ण ने खाटू श्याम को वरदान दिया कि उन्हें कलियुग में उनके नाम से पूजा जाएगा। इसके बाद से बर्बरीक को बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। इस महत्व के कारण राजस्थान, सीकर में लक्खी मेला लगाया जाता है। 10 दिन तक चलने वाले इस मेले में लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं।
कैसे बना खाटू श्याम का मंदिर
खाटू श्याम को कलियुग में हारे हुए लोगों का सहारा माना जाता है। कलियुग की शुरुआत में जमीन के नीचे से खाटू श्याम का सिर मिला था। इसके मिलने के पीछे भी एक कहानी है। मान्यता है कि जहां से श्याम बाबा का सिर मिला था, वहां एक गाय आती थी, जिसके थन से स्वंय ही दूध निकलकर उस जगह पर गिरता रहता था। जब लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया, तो उस जगह की खुदाई करने का फैसला किया गया। खुदाई में वहां से श्याम बाबा का सिर निकला। इस सिर को एक पुरोहित को सौंप दिया गया। इसके बाद राजस्थान के तत्कालीन राजा रूप सिंह को उस जगह पर मंदिर बनवाने का सपना है। सपना आने के बाद उस जगह पर श्याम बाबा का मंदिर बनवाया गया।
खाटू श्याम मंदिर का महत्व
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर को 1027 ईस्वीं में राजा रूप सिंह ने बनाया था। इसके बाद 1720 ई. के करीब देवान अभय सिंह ने मंदिर में कुछ बदलावों के साथ पुनिर्माण कराया। मंदिर की बनावट की बात करें, तो इसे पत्थरों और संगमरमर से बनवाया गया है। मंदिर के बाहर एक प्रार्थना कक्ष है जबकि मंदिर में एक कुंड भी है, जहां पर लोग स्नान करते हैं। बाबा भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करे, इसके लिए यहां पर चुन्नी और धागे भी बांधे जाते हैं।
खाटू धाम के लक्खी मेले में क्या होगा खास
हर बार की तरह इस बार भी खाटू श्याम बाबा में लगने वाले लक्खी मेले में काफी तैयारियां की गई हैं। श्याम बाबा के मंदिर को फूलों से सजाया जाएगा और श्याम बाबा का भी श्रृंगार किया जाएगा। श्याम बाबा का श्रृंगार गुलाब, चमेली और गेंदे के फूलों सहित सुंदर वस्त्रों से भी किया जाता है।
फाल्गुन मास में बाबा को चढ़ाते हैं गुलाल
यह मेला होली के आसपास लगाया जाता है, इसलिए श्याम बाबा के भक्त उनके साथ होली भी खेलते हैं। श्याम बाबा के जन्मदिन पर भक्त उन्हें गुलाल भी चढ़ाते हैं और मेले में होली का उत्साह भी दिखाई देता है। गुलाल लगाने के अलावा कई तरह की मिठाई, गुजियां और खाने-पीने की चीजें भी खाटू श्याम बाबा को चढ़ाई जाती है।
कैसे पहुंचे खाटू श्याम बाबा धाम में लगे लक्खी मेले में
आप भी अगर राजस्थान के सीकर में लगने लगने वाले लक्खी मेले में दर्शन करने जाना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए सबसे पहले जयपुर आना होगा। खाटू श्याम मंदिर जयपुर से 80 किलोमीटर दूर खाटू गांव में स्थित है। रिंगस नाम का रेलवे स्टेशन सबसे पास पड़ता है। रेलवे स्टेशन से निकलने के बाद आप टैक्सी या जीप की मदद से खाटू धाम में लगने वाले मेले में पहुंच सकते हैं। वहीं, अगर अपनी गाड़ी से दिल्ली या आसपास की जगहों से जा रहे हैं, तो 5-6 घंटे का समय लग जाएगा।