Kullu Dussehra Festival 2024 : ना रामलीला ना रावण दहन, फिर भी क्यों मशहूर है अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा, जानें खास बातें

दिल्लीवालों ने धूमधाम से दशहरा मनाया लेकिन एक दशहरा अभी बाकी है। एक अनोखा दशहरा, जिसमें न तो रावण का पुतला जलाया जाता है और ना ही उसकी कहानियां कही जाती हैं। देवताओं के मिलन और उनके रथों को खींचते हुए ढोल-नगाड़ों की धुनों पर नाटी नाचते लोगों का यह दिलचस्प मेला कुल्लू के दशहरे के रूप में पूरी दुनिया में मशूहर है। हिमाचल प्रदेश के इस अनोखे दशहरे की शुरुआत भी तब होती है, जब बाकी सारी दुनिया दशहरा मना लेती है। बाकी जगहों की तरह एक दिन का दशहरा भी नहीं होता, उत्सव 7 दिन तक चलता है। इस बार कुल्लू दशहरा की शुरुआत 13 अक्टूबर से हो चुकी है और यह 19 अक्टूबर तक मनाया जाएगा।

25 देशों के कलाकार लेंगे भाग

रविवार से शुरू हुए दशहरा मेले में इस बार 25 देशों के कलाकार भाग ले रहे हैं। इस दौरान हर दिन सांस्कृतिक संध्या मनाई जाएगी, जिसमें देश-विदेश के कलाकार अपनी परफॅार्मेंस देंगे। दशहरा उत्सव के आखिरी दिन पर पहाड़ी नाइट होगी, जब हिमाचली कलाकार समां बांधेंगे। 15 से 18 अक्तूबर तक ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिताएं भी होंगी। सुरक्षा व्यवस्था के लिए 1,400 जवान तैनात रहेंगे। ड्रोन के साथ-साथ सीसीटीवी कैमरों से भी नजर रहेगी।

हिमाचल की संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है कुल्लू मेला

कुल्लू का दशहरा हिमाचल की संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक नजर से बेहद अहम है। भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा से दशहरा शुरू होता है और सभी स्थानीय देवी-देवता ढोल-नगाड़ों की धुनों पर देव मिलन में आते हैं। इस बार 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया है। दरअसल हिमाचल के लगभग हर गांव का अलग देवता होता है और लोग उन्हें कर्ता-धर्ता मानते हैं। उनका मानना है कि बर्फीली ठंड और सीमित संसाधनों के बावजूद वे इन पहाड़ों पर देवताओं की कृपा से शान से रह पाते हैं।

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का इतिहास

कुल्लू के ढालपुर मैदान में दशहरा पहली बार 1662 में मनाया गया था, तो उस समय सिर्फ देव परंपराओं से ही यह पर्व शुरू हुआ था। न तो कोई व्यापार था और ना ही किसी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम। कहा जाता है कि 1650 के दौरान कुल्लू के राजा जगत सिंह को भयंकर बीमारी हो गई थी। ऐसे में बाबा पयहारी ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर उसके चरणामृत से ही इलाज होगा। कई संघर्षों के बाद रघुनाथजी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथजी को सबसे बड़ा देवता मान लिया। देव मिलन का प्रतीक दशहरा उत्सव आरंभ हुआ और यह आज तक जारी है।

हर दिन अलग होती है परंपरा

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का भव्य आयोजन धौलपुर के मैदान में होता है और यह उगते चंद्रमा के 10वें दिन से आरंभ होता है और 7 दिनों तक यह उत्सव चलता है। दशहरे के पहले दिन दशहरे की देवी और मनाली की हिंडिबा कुल्लू आती हैं और भक्तों को दर्शन देती हैं। इस दौरान राजघराने के सभी सदस्य और देवी देवता आशीर्वाद लेने मेले में पहुंचते हैं। 7 दिन चलने वाले इस मेले में हर दिन एक अलग परंपरा का निर्वाहन किया जाता है।