रंगों का रखा जाता है खास ध्यान
आज खेली जा रही लट्ठमार होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं ही भाग लेती हैं। क्योंकि भगवान कृष्ण नंदगांव के थे और राधा रानी बरसाने की थीं। लट्ठमार होली में रंगों का भी खास ध्यान रखा जाता है। रंगों में कोई मिलावट ना हो, इसके लिए टेसू के फूलों से रंगों को विशेष तौर पर तैयार किया जाता है। लट्ठमार होली के दौरान यहां रसिया गायन का भी आयोजन किया जाता है।
40 दिन मनाया जाता है होली का महोत्सव
ब्रज में होली का उत्सव 40 दिन तक मनाया जाता है और इसकी शुरुआत बसंत पंचमी के दिन डांढ़ा गाड़ने के साथ हो जाती है और इसका समापन रंगनाथ मंदिर में होली खेलकर किया जाता है। होलाष्टक से ब्रज के मंदिरों में होली खेलना शुरू हो जाता है, जिसकी शुरुआत बरसाने की लड्डू मार होली से होती है, इसके बाद लट्ठमार होली होती है।
कल नंदगांव में खेली जाएगी लट्ठमार होली
ब्रज के सभी तीर्थस्थलों में अलग-अलग परंपरा के साथ होली खेली जाती है इसलिए विश्वभर में ब्रज की होली का खास महत्व है। लट्ठमार होली में नंदगांव के लोग कान्हा की ढाल के साथ बरसाने की हुरियारिन राधा की लाठियों के साथ लट्ठमार होली खेली जाती है। बरसाने में आज लट्ठमार होली खेली जाएगी और कल यानी 1 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाएगी। नंदगांव में बरसाने को लोग आएंगे, जहां उन पर नंदगांव की हुरियारिन लट्ठ बरसाएंगी।
इस तरह शुरू हुई लट्ठमार होली की परंपरा
लट्ठमार होली खेलने की परंपरा राधा और कृष्ण के समय से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण को होली का उत्सव बहुत प्रिय है और वे अपने सखाओं के साथ इस उत्सव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। होली के मौके पर भगवान कृष्ण नंदगांव से राधारानी के गांव बरसाने में जाते हैं और उनके साथ सखा ग्वाले भी होते थे। कृष्ण जब बरसाने पहुंचे थे, तब वह सखाओं ग्वालों के साथ राधा रानी और उनकी सखियों के साथ होली की ठिठोली करने लगते। लेकिन राधा रानी और उनकी सखियां भी कम नही थीं, वे छड़ियों से उनको मारने लगतीं। तभी से यह परंपरा शुरू हो गई और आज भी बरसाने और नंदगांव में यह परंपरा निभाई जा रही है। मान्यता है कि बरसाने और नंदगांव की लट्ठमार होली खेलने पर भगवान कृष्ण और राधा रानी भी इसी रंग में रंग जाते हैं।
इस तरह होगी बरसाने की लट्ठमार होली
नंदगांव की टोलियां रंग और पिचकारियों के आज बरसाने के मंदिर पहुंचेंगे, जहां पर होली का कार्यक्रम होगा। नंदगांव के लोगों का बरसाने के प्रिया कुंड पर स्वागत किया जाता है। यहां पर बरसाने के निवासी नंदगांव से आए हुरियारों को मिठाई, ठंडाई आदि खिलाकर स्वागत करते हैं। ये नंदगांव से आए हुरियारों को कृष्ण और उनके सखाओं का स्वरूप मानते हैं। प्रिया कुंड पर ही हुरियारे अपनी पाग बांधते हैं और फिर ढाल से ब्रह्मांचल पर्वत पर राधारानी के मंदिर पहुंचते हैं और फिर शुरू होती है लट्ठमार होली।
इस तरह हुरियारे करते हैं अपना बचाव
लट्ठमार होली खेलने के लिए हुरियारे बरसाने की रंगीली गली में जाते हैं। मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी गली में राधा रानी और उनकी सखियों के साथ होली खेले थे। लेकिन अब बरसाने की हर गली और चौराहे पर यह होली खेली जाती है। बरसाने की हुरियारिन होली के गीत और रसिया गाकर नंदगांव के ग्वालों पर लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से अपना बचाव ढाल से करते हैं और साथ ही साथ बरसाने की महिलाओं को रंग से भिगोया भी जाता है। इसके लिए लाठी और ढालों का सहारा लिया जाता है। इसके बाद अगले दिन नंदगांव में भी यही आयोजन किया जाता है। बरसाने और नंदगांव के लोगों को यह विश्वास होता है कि लाठियों से किसी को चोट नहीं लगेगी। अगर चोट लग जाती है तो ब्रज की मिट्टी लगा दी जाती है और फिर खेल शुरू कर दिया जाता है।