10 जनवरी को पौष मास की पूर्णिमा तिथि है। इस दिन चंद्रमा का संचार मिथुन राशि में होगा। इस राशि में चंद्रमा उपछाया चंद्र ग्रहण से गुजरेगा। धार्मिक दृष्टि से पौष पूर्णिमा काफी महत्व बताया गया है और इसी दिन से प्रयागराज में संगम के तट पर ऐतिहासिक माघ मेले का आरंभ होता है। चूंकि इस दिन चंद्र ग्रहण भी लग रहा है तो चंद्रमा से संबंधित अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए भी प्रयागराज, हरिद्वार और गंगासागर में गंगा स्नान करना विशेष फलदायी है। पुराणों में कार्तिक मास की तरह माघ के महीने में भी स्नान, दान और ध्यान का विशेष महत्व होता है। माघ मेले के महत्व के बारे विस्तार से जानिए पंडित राकेश झा से…
Magh Mela 2020 dates: 10 जनवरी से शुरू होगा माघ मेला, जानें ये खास बातें
स्वर्ग में मिलता है स्थान
शास्त्रों में पौष माह की पूर्णिमा तिथि के स्नान-दान के महत्व का वर्णन करते हुए बताया गया है कि, जो व्यक्ति पूरे माघ मास के लिए स्नान का व्रत धारण करते हैं, वो अपने स्नान का प्रारम्भ पौष पूर्णिमा से शुरू कर माघी पूर्णिमा को समापन करते हैं। इस दिन स्नान के पश्चात् मधुसूदन भगवान की पूजा-आराधना करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। इससे श्रीनारायण की कृपा से मृत्योपरांत भक्तों को स्वर्ग में स्थान मिल प्राप्त होता है।
सौ हजार गायों को दान करने का फल
दरअसल पौष पूर्णिमा के सुअवसर पर ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति, चंद्र आदि ग्रहों के माध्यम से अमृत वर्षाकर स्नान आदि करने वालों को निरोगी काया सहित पुण्य लाभ प्रदान करती है। सौ हजार गायों का दान करने का जो फल होता है वही फल तीर्थराज प्रयाग में माघ मास में तीस दिन (एक मास) स्नान करने का होता है। माघ स्नान के लिए तीर्थराज प्रयाग को सर्वोत्तम माना गया है, लेकिन यदि कोई श्रद्धालु वहां न आ सके, तो वह जहां कहीं भी स्नान करे, वहां प्रयागराज सहित मां गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रिवेणी संगम का स्मरण कर ले, इससे भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
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ऊनी वस्त्र और कंबल कर सकते हैं दान
मनोवांछित फल की कामना रखने वालों को अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। शीत ऋतु होने के कारण कंबल आदि ऊनी वस्त्रों का दान इस समय विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। जो लोग पूरे महीने दान न कर पाएं वे कम से कम पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन ही दान करके अपना लोक-परलोक संवार सकते हैं। माघ मास में स्नान, दान, उपवास व भगवान माधव की पूजा अत्यंत फलदायी बताई गई है।
इस विषय में महाभारत के अनुशासन पर्व में इस प्रकार वर्णन है-
दशतीर्थसहस्त्राणि तिस्त्रः कोट्यस्तथा पराः।
समागच्छन्ति माघ्यां तु प्रयागे भरतर्षभ।।
माघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः।
स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात्।
अर्थात् माघ मास में प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है, जो श्रद्धालु नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करते हैं, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को जाते हैं। पूर्णिमा चंद्रमा की प्रिय तिथि है, यह तिथि सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। जो पूर्णिमा को चंद्रमा का पूजन करते हैं, वे धन-धान्य से युक्त होते हैं। इस पर उपछाया चंद्रग्रहण होना इसके महत्व को और बढ़ा रहा है।
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चंद्रमा की महादशा दूर करने का विशेष अवसर
जिनके ऊपर चंद्रमा की महादशा चल रही है या जिन्हें मानसिक उलझनें अधिक रहती हैं, वह नौ रत्ती का मोती दाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली में चांदी की अंगूठी में जड़वाकर प्राण-प्रतिष्ठा करवाकर इस दिन धारण कर सकते हैं। विशेष लाभ के लिए हाथ की अपेक्षा गले में अर्द्धचन्द्राकार रूपी लॉकेट में मोती जड़वाकर धारण करना चाहिए। व्रती को इस दिन प्रातःकाल नदी आदि में स्नान करके देवताओं का पूजन एवं पितृों का तपृण करना चाहिए इससे पितरों की भी कृपा प्राप्त होती है। सफेद चंदन, चावल, सफेद फूल, धूप-दीप, सफेद वस्त्र आदि से चंद्रमा का पूजन करना चाहिए।