आधी रात से लग जाती है भक्तों की कतारें
मकर संक्रांति पर यहां आधी रात से ही भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लग जाती हैं। यहां के बारे में ऐसा बताया जाता है कि सूर्य की पहला किरण मंदिर के गुंबद से होती हुई सीधे सूर्यदेव की प्रतिमा पर पड़ती है। इस चमत्कार के दर्शन लाभ लेने के लिए यहां आधी रात से ही भक्तों की भीड़ जुटना आरंभ हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति पर यहां सूर्य देव की प्रतिमा के साथ ही नवग्रहों की पूजा करने से सभी ग्रहों की अशुभ दशा में राहत मिलती है।
ऐसी है मंदिर की संरचना
मंदिर के 3 शिखर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय 7 सीढ़ियां 7 वारों को दर्शाती हैं। प्रथम तल में माता सरस्वती का मंदिर है। श्रीराम मंदिर में भगवान राम द्वारा शिवजी की पूजा करते हुए एक ही पत्थर पर पूरे राम दरबार की प्रतिमा बनाई गई है। गर्भ गृह में उतरने के लिए 12 सीढ़ियां 12 राशियों को दर्शाती हैं। गर्भ गृह से वापस ऊपर चढ़ने के लिए बनी 12 सीढ़ियां 12 महीनों को दर्शाती हैं। सूर्य की प्रतिमा बीचों बीच में और उसके चारों ओर सभी ग्रहों की प्रतिमाएं सौर मंडल को दर्शाती हैं। इसके साथ ही यहां पर नवग्रहों के उपासक सभी देवताओं की भी प्रतिमाएं हैं।
मंदिर का इतिहास
मंदिर की स्थापना 600 साल पहले आदिपूर्वज श्री शेषाप्पा सुखावधानी ने की थी। यहां हर साल मकर संक्रांति पर जनवरी-फरवरी माह में ऐतिहासिक श्री नवग्रह मेले का आयोजन होता है और आने वाले गुरुवार को नवग्रह महाराज की पालकी यात्रा निकाली जाती है।
सूर्य नारायण की कथा करवाने का महत्व
इस नवग्रह मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यहां मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य भगवान और नवग्रह की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यहां मकर संक्रांति के अवसर पर भगवान सूर्य नारायण की कथा करवाने का भी विशेष महत्व बताया जाता है। यहां नवग्रह मंदिर परिसर में सैकड़ों पंडितों द्वारा मकर संक्रांति पर पूरे दिन सूर्य नारायण भगवान की कथा कराई जाती है।
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