Makar Sankranti Ganga Sagar Snana: मकर संक्रांति पर यहां स्नान करना बेहद पुण्यदायी, मिलता है मोक्ष

कहां स्थित हैं गंगासागर

बर्फ से ढके हिमालय से आरंभ होकर गंगा नदी धरती पर नीचे उतरती है और हरिद्वार से होती हुई मैदानी स्थानों पर पहुंचती है। जोकि क्रमशः आगे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश के बनारस, प्रयाग से प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। यहीं पवित्र पावनी गंगा नदी सागर से मिल जाती है। इस जगह को गंगासागर यानी ‘सागर द्वीप’ कहा जाता है। यह पश्चिम बंगाल में स्थित है। मकर संक्रांति के दिन लाखों हिंदू तीर्थयात्री यहां पर डुबकी लगाने के लिए इकट्ठा होते हैं और कपिल मुनि मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।

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गंगा सागर का पौराणिक महत्‍व

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गंगा सागर का पौराणिक महत्‍व

प्रतीकात्‍मक

पुराणों में गंगा सागर की उत्‍पत्ति के पीछे एक कथा के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। मान्यता है कि, गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थ यात्राओं के समान है। शायद इसलिए ही कहा जाता है कि “हर तीर्थ बार–बार, गंगासागर एक बार।”

मिलता है पुण्‍य

यहां मकर संक्रांति के अवसर पर स्‍नान करने देश ही नहीं विदेश से भी लोग आते हैं। मान्‍यता है कि एक बार गंगासागर में डुबकी लगाने पर 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के समान फल मिलता है। स्‍नान के बाद श्रद्धालु यहां स्थित भगवान विष्‍णु के अवतार माने जाने वाले कपिलमुनि के मंदिर में दर्शन करते हैं।

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महाकुंभ के बाद सबसे बड़ा मेला

गंगासागर का मेला माना जाता है महाकुंभ के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला है। यह मेला वर्ष में एक बार लगता है। यह मेला पांच दिन चलता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है। यहां गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है, बस एक मील का स्थान निश्चित है, जिसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां कपिल मुनि का मंदिर है, जिसकी मूर्ति बताते हैं कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्‍ताह पहले पुरोहितों को पूजा करने के लिए मिलती है।

यहां समुद्र को अर्पित करते हैं नारियल

यहां मेले में आए श्रद्धालु संगम पर समुद्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं और साथ ही गऊदान भी करते हैं। कहते हैं मृत्‍यु के बाद भवसागर को पार करने के लिए आत्‍मा को गौ की पूंछ का ही सहारा लेना पड़ता है, तभी मोक्ष मिलता है। इसी वजह से यहां पंडे मेले के वक्‍त भाड़े पर गाय लेकर उसे श्रद्धालुओं को बेचते हैं और फिर उसी गाय को वापस दान में ले लेते हैं।

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युवक और युवती की पूरी होती है मनोकामना

मान्‍यता है कि जो कुंवारे युवक और युवतियां यहां आकर मकर संक्रांति के अवसर पर गंगासागर में स्‍नान करते हैं, उन्‍हें फलस्‍वरूप मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।