Mystery of Geeta : गीता के ये 7 मंत्र रट लें तो कामयाबी कदम चूमेगी

गीता भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ शब्द है। गीता का जन्म उस विकट समय में हुआ था जब धर्मयुद्ध के बीच खड़े अर्जुन मोह के बंधन में उलझ गए थे। भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि त्रेतायुग के बाद कलियुग आरंभ हो जाएगा जिसमें मनुष्य मोह, माया, लोभ, छल के जाल में उलझकर पथ भ्रष्ट हो जाएगा। ऐसे में मनुष्य को मार्ग दिखाने के लिए एक दिव्य ज्ञान की जरूरत होगी जिससे मनुष्य कर्म पथ पर चलता हुआ मोह के बंधन से मुक्त होकर मुक्ति प्राप्त कर सके।

कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी ओ माई गॉड फिल्म में भगवान के आधुनिक स्वरूप को दर्शाया गया था और उनके माध्यम से वर्तमान समय में गीता के महत्व और लाभ को बताया गया था। अगर व्यक्ति गीता के संदेशों को ध्यान से देखे तो वर्तमान समय में नौकरी व्यवसाय के अलावा जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी कामयाबी हासिल करते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

सेहत का रखें ध्यान- गीता का सबसे जरूरी ज्ञान है कि व्यक्ति संतुलित आहार ले और स्वस्थ रहे क्योंकि सफलता के लिए ना तो अधिक खाने की और ना बिल्कुल ना खाने से प्राप्त होती है। व्यक्ति स्वस्थ रहेगा तभी नियमित रूप से साधना, उपासना, स्वाध्याय, सत्संग का लाभ उठा सकता है। कार्यक्षेत्र में भी अच्छी सेहत से ही सफलता पा सकते हैं।

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खान-पान को संयमित- ‘जैसा खाय अन्न वैसा बने मन’ यह पुरानी कहावत है। यह गीता का भी ज्ञान है तामसी एवं असंयम पूर्ण भोजन से चित्त में चंचलता तथा दोष पूर्ण विचार उत्पन्न होते हैं, जिससे सोच विकृत होती है। इसीलिए जब सफलता चाहते हों तो सात्विक, पौष्टिक तथा प्राकृतिक रसों से परिपूर्ण सादा आहार ही ग्रहण करना चाहिए।

मन में संदेह- गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने ‘संशयात्मा विनष्यति’ कहा है। बड़े और महान् कार्य समय एवं श्रम साध्य होते हैं। इसमें शंका-आशंका करने वालों को सफलता नहीं मिलती। इसके लिए दृढ़ विश्वासी, संकल्प के धनी व्यक्ति ही सफल हो पाते हैं। इसलिए मन को संदेह का घर नहीं बनने देना चाहिए। अर्जुन के मन में भी युद्ध के आरंभ में संदेह और शोक उत्पन्न हो गया था। गीता के द्वारा श्रीकृष्ण ने अर्जुन के इन दो शत्रुओं का अंत किया।

कर्मफल में अरुचि – सफलता चाहने वाले को कर्म फल में अरुचि होनी चाहिए। परिणाम और प्रसिद्धि की चाहत रखकर काम करेंगे तो सफलता में संदेह रहेगा। क्योंकि आपका लक्ष्य कर्मफल हो जाएगा कर्म नहीं। सफलता मिलने पर प्रसिद्धि पीछे-पीछे आती है इसलिए कर्म पर ध्यान देना चाहिए, कर्मफल पर नहीं।

समय पालन जरूरी- किसी भी कार्य को ठीक एक ही समय पर नियम के साथ करते रहने से उस कार्य की आदत बन जाती है। समय पालन के अभाव में कोई भी साधना सफल नहीं होती।

वासना से बचें- इन्द्रियों को संतुष्ट कर पाना आज तक किसी भी साधन संपन्न व्यक्ति के लिए संभव नहीं हो सका। एक बार की तृप्ति दूसरी बार की तृप्ति का आकर्षण बन जाती है। कठोरतापूर्वक इनके दमन से ही वासना में नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।

ब्रह्मचर्य का पालन- प्राण शक्ति, स्फूर्ति, बुद्धि यह सब वीर्य के ऊर्ध्वगामी होने से प्राप्त होती है। वीर्य की रक्षा प्राणपण से की जानी चाहिए। विवाहित हों, तो केवल संतानोत्पादन के लिए वीर्य-दान की प्रक्रिया अपनाई जाय अथवा कठोरतापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाय। इससे प्रत्येक साधना सधती है।

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डॉ. प्रणव पण्ड्या (शांतिकुंज हरिद्वार)