वेदव्यासजी ने कहा कि हे कुंतीनंदन, ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा गया है। इस दिन आचमन और दंतधावन यानी दांत साफ करने के अलावा अन्य कार्यों के लिए मुंह में जल नहीं लेना चाहिए इससे यह व्रत भंग हो जाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
व्यासजी की बातों को सुनकर भीमसेन बोल उठे, हे महाबुद्धिमान पितामह मेरे सभी भाई द्रौपदी सहित एकादशी का व्रत करते हैं। लेकिन मेरे पेट में वृक नामक अग्नि हमेशा जलती रहती है जिससे मैं भूखा नहीं रह सकता है। जबतक मैं जी भरकर भोजन ना कर लूं यह अग्नि शांत नहीं होती। इस पर व्यासजी ने कहा कि अगर तुम्हें स्वर्ग की अभिलाषा है तो तुम्हें एकादशी का व्रत करना ही चाहिए। भीम के ऐसे कहने पर व्यासजी ने कहा कि फिर तुम पूरे साल की एकादशी का फल देने वाली निर्जला एकादशी का व्रत जरूर करो।
व्यासजी ने कहा कि, भगवान विष्णु ने कहा है जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत का नियमपूर्वक पालन करता है वह करोड़ों स्वर्ण मुद्रा दान करने का पुण्य प्राप्त कर लेता है। इस एकादशी के दिन किए गए जप, तप, दान का पुण्य अक्षय होता है यानी वह अनेक जन्मों तक लाभ देता है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करते हैं उनके सामने मृत्यु के सामने यम के दूत नहीं आते बल्कि भगवान विष्णु के दूत जो पितांबर धारण किए होते हैं वह विमान में बैठाकर अपने साथ ले जाते हैं। पद्पुराण में कहा गया है कि निर्जला एकादशी व्रत की कथा को कहने और सुनने से भी ग्रहण के दौरान किए गए दान के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है।
निर्जला एकादशी का व्रत नहीं करते हैं तब भी इन बातों का रखें ध्यान, बहुत लाभ