विवेकानंद के विचारों से प्रेरणा लेते हैं पीएम मोदी
पीएम मोदी का स्वामी विवेकानंद से हमेशा लगाव रहा है और वह उनके विचारों से प्रेरणा लेते रहते हैं। मोदी कई बार विभिन्न मंचों से चर्चा करते रहे हैं कि कैसे विवेकानंद ने पश्चिमी दुनिया को अद्वैतवाद समझाया और समाज की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इसलिए पीएम मोदी विवेकानंद मेमोरियल पर ध्यान मंडपम में 30 मई की शाम से एक जून की शाम तक ध्यान करेंगे। सालों पहले इसी चट्टान पर स्वामी विवेकानंद ने तीन दिनों तक ध्यान कर विकसित भारत का दर्शन देखा था।
विवेकानंदजी ने तीन दिन किया था ध्यान
इसी चट्टान का स्वामी विवेकानंद के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। लोगों का मानना है कि जैसे सारनाथ गौतम बुद्ध के जीवन में विशेष स्थान रखता है, क्योंकि उनको वहां बोध या ज्ञान प्राप्त हुआ था, वैसे ही यह चट्टान स्वामी विवेकानंद के जीवन में भी वैसा ही खास स्थान रखता है क्योंकि यहां उन्होने विकसित भारत का सपना देखा था। स्वामी विवेकानंद देश भर में घूमने के बाद यहां पर 24 दिसंबर 1892 में पहुंचे थे और तीन दिनों तक यानी 25 से 27 दिसंबर तक इसी चट्टान पर ध्यान किया था। यहां पर उनकी आदमकद मूर्ति भी है।
कन्याकुमारी में है चमत्कारी शक्तिपीठ
इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर देवी पार्वती ने एक पैर पर बैठकर भगवान शिव की प्रतीक्षा की थी। यहां पर कुमारी देवी के पैरों के निशान भी हैं, जो ठीक विवेकानंद रॉक मेमोरियल के सामने हैं। कन्याकुमारी में कन्या आश्रम स्थल पर एक शक्तिपीठ भी है, जहां माता सती का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था। कुछ विद्वान मानते हैं कि यहां माता का ऊर्ध्व दांत गिरा था। इस शक्तिपीठ की शक्ति सर्वाणि और शिव का निमिष कहते हैं। कन्याश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह शक्तिपीठ एक टापू पर है, जो चारों ओर से जल से घिरा हुआ है। यहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है और मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
कन्याकुमारी को लेकर है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी और के हाथों वध नहीं होगा। राजा भरत के 8 पुत्री और एक पुत्र था और उन्होंने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी सभी संतानों को दे दिया था। दक्षिण का यह हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला था। कुमारी बहुत बड़ी शिव भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां शुरू होने लग गईं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि कुमारी के हाथों वाणासुर का वध हो जाए। इस वजह से कुमारी और भगवान शिव का विवाह नहीं हो पाया था।
इसलिए स्थान का नाम पड़ा कन्याकुमारी
कुमारी को देवी शक्ति का अंश माना जाता है और वाणासुर का वध करने के बाद दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाने लगा। समुद्री तटों पर कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती की कन्या रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। विवाह संपन्न ना हो पाने की वजह से शादी के बचे हुए दाल चावल कंकर बन गए और यह कंकर समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार में बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।