मुख में प्रयागराज का जल पड़ते ही नर्तकी मर गयी और अगले जन्म में वह एक राजा के यहां जन्मी, युवा होने पर उसका विवाह एक प्रतापी राजकुमार से हुआ और वह महारानी बनी। एक बार उसको एक पुस्तक मिली, जिसमें देवी-देवताओं के चित्र के साथ भारत का भौगोलिक मानचित्र भी बना था। मानचित्र देखते-देखते उस रानी की दृष्टि तीर्थराज प्रयाग पर पड़ी जिसे देखकर उसे तुरन्त अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो गया। उसने महल लौटकर अपने पति से पूर्वजन्म की सारी घटनाएं सुनाकर प्रार्थना की कि ‘हे नाथ! मैं तीर्थराज प्रयागराज के संगम जल के प्रसाद से ही आपके घर की रानी बनी हूं, इस समय आपके साथ चलकर तीर्थराज प्रयाग का दर्शन-पूजन करना चाहती हूं।
अब मैं तीर्थराज प्रयागराज पहुंचकर ही अन्न-जल ग्रहण करूंगी।’ राजा के पूरा विश्वास न करने पर उसी समय एक आकाशवाणी ने कहा ‘राजन्! तुम्हारी पत्नी का कथन सत्य है। परम पवित्र प्रयाग तीर्थ में जाकर तुम स्नान करो। इससे तुम्हारी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जायंगी।’ तब राजा आकाशवाणी को नमस्कार करके मन्त्री को राज-पाट सौंपकर, रानी के साथ प्रयागराज के लिए चल पड़े और कुछ दिनों में प्रयागराज आ पहुँचे। पद्म पुराण में आगे वर्णित है कि प्रयागराज तीर्थ में संगम स्नान के पुण्य प्रताप से उन दोनों को भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के दर्शन हुए। राजा और रानी ने उन्हें प्रणाम किया और अपने मनोरथ पूर्ण करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा और भगवान विष्णु के आशीर्वाद से उनके मनोरथ पूर्ण हुए और राजा-रानी ने अपनी आयु पूर्ण कर प्रयागराज के पुण्य प्रताप से सत्य लोक में मृत्यु के बाद स्थान प्राप्त किया।