होलिका दहन की राख होती है खास
होलिका दहन के बाद उसकी राख पर परंपरा के अनुसार, पंजाबी परिवार को लोग आटे या बेसन की मीठी रोटी बनाते हैं, जिसे डोढा कहा जाता है। इसकी अपनी मान्यता है। यही रोटी रंग खेलने वाले दिन परिवार के लोगों को खिलाई जाती है। वहीं होली से पहली रात को करेले, आलू व नमकीन रोटियां बनाकर रखी जाती हैं। इसी खाने को ठंडा खाना कहा जाता है, जिसे अगले दिन परिवार के सभी एक साथ खाते हैं।
गुझिया और लड्डू से होता है मुंह मीठा
मालपुआ, गुझिया और लड्डू जैसी पारंपरिक मिठाइयों के साथ होली का स्वागत होता है। इसके साथ ही अलग-अलग तरह के चिप्स, दही भल्ले, पापड़ समेत कई और पकवान तैयार किए जाते हैं।
दिखाते हैं तलवारों के करतब
होला मोहल्ला का यह त्योहार आनंदपुर साहिब में 6 दिन तक चलता है। इस मौके पर भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखाकर साहस और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं।
एक छड़ भक्त प्रहलाद और दूसरी रखते हैं होलिका के लिए
होलिका दहन वाली जगह को करीब 8 दिन पहले साफ पानी धोया जाता है और लकड़ी की 2 छड़ें रख दी जाती हैं। इनमें से एक छड़ भक्त प्रहलाद के लिए और दूसरी होलिका के लिए होती है। इनके अलावा सूखे गोबर, सूखी लकड़ी और घास जैसी चीजें भी छड़ों के आसपास रखी जाती हैं। आसपास रहने वाले भी अपने-अपने घरों से गोबर से बने बुरकले और लकड़ियों के ढेर लाकर होलिका को सजाते रहते हैं। जब होलिका दहन का दिन आता है, तब तक वहां लकड़ियों का बड़ा सा ढेर बन जाता है। पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब में होली के दिन ऊंचाई पर लटकी हुए मटकी को तोड़ने की भी परंपरा है।
परंपराओं का होता है पालन
पंजाबी समाज को होली का बेसब्री से इंतजार रहता है। बड़े हों या बच्चे सभी होली का आनंद उठाते हैं। होली में रंगों की मस्ती के साथ-साथ रीति रिवाज और सभ्यता पूरी तरह झलकती हैं। होली के दिन रंग सम्मान के निशान के रूप में बुजुर्गों के पैरों पर रखा जाता है और बुजुर्ग व्यक्ति युवाओं के चेहरे और सिर पर रंग डाल कर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। होली के गीत गाए जाते है। लोग एक दूसरे के घरों पर होली मिलने जाते हैं।