Ram Navami 2019: इस तरह राम नाम लेने से मिलती है जन्म-मरण से मुक्ति

प्रभु राम के जन्म से बसंत ऋतु का समापन नवरात्र में ही होता है। ऐसी मान्यता है कि अयोध्या सहित सारे तीर्थ स्थानों में रामनवमी के बाद भी आदि शक्ति की पूजा होती रहती है। राम का मतलब रम जाना, यानि लीन हो जाना। जीवन की सारी लौकिकता के बीच रहकर अपनी चेतना को लक्ष्य पर केंद्रित कर देना। जैसे कवि के लिए कविकर्म ही उसका राम है, चित्रकार के लिए उसकी सर्वश्रेष्ट कृति ही राम है, एक योगी के लिए सिद्धि राम है। जीव के लिए ब्रहम राम है और स्टूडेंट के लिए ज्ञान ही राम है। अपने कर्म में रम जाना ही राम है।

भगवान शिव के आदेश पर तुलसीदासजी ने लिखी थी रामचरित मानस

अनमोल है राम का उच्चारण
राम का उच्चारण अनमोल है। राम बोलते ही शरीर और मन में आत्मिक शांति मिलती है। तभी तो संतो और महात्माओं ने राम का नाम जप किया। हनुमान, लक्ष्मण, सुग्रीव, कबीर, तुलसी और गांधी तक राम नाम जपते रहे। राम नाम की महिमा जपने से मानसिक ताप मिट जाते हैं। राम राज्य की कल्पना और मर्यादा से जीया जीवन आज तकल लोगों का आदर्श है। राम युग और हर तरह के बंधंनों से अलग हैं। राम हमें अपने उत्तरदायित्व से विमुख न होने का बल देते हैं। उन्होंने ईश्वर होते मानव रूप में कर्तव्यों का पालन किया। सच में कष्ट उठाकर जिम्मेदारी को निभाना ही पुरूषोत्तम बनना है। तभी राम की पूजा उनके देवत्व के कारण नहीं, बल्कि उनके गुणों के होती है। राम धन ऐश्वर्य के बीच नहीं बसते, उन्हें तो भक्त का प्यार चाहिए।

जन्म-मरण के बंधंन से मिलती है मुक्ति
रामनवमी को राम नाम के स्मरण का खास महत्व है। पुराणों के अनुसार धरती पर रक्ष जाति के नए राक्षस पैदा हुए, जो बाद में रावण खानदान से जुड़े। त्रिदेव ब्रहमा, विष्णु और महेश ने दूर दृष्टि से काम लिया और मनुष्य रूप में राजा दशरथ के घर राम ने चैत्र महीने में जन्म लिया। राम ने बाल उम्र में ताड़का व अन्य राक्षसों का वध किया और ऋषि मुनियों की रक्षा की। कहते हैं कि जो एक बार राम की शरण में आ जाता है, उसे जन्म-मरण के बंधंन से मुक्ति मिलती है।

केवल शब्द नहीं है रामचरित मानस की चौपाई, होती है मनोकामना पूर्ण

पूजा का है खास विधान
आज के दिन सभी मंदिरों में पूजा का खास विधान है। भक्त सुबह सबेरे सूर्य भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद दोपहर में भगवान राम के जन्म होने की कल्पना की जाती है। लोग भगवान राम की पूजा करने के साथ ही मंदिरों में उनसे संबंधित भक्ति गीत भी गाते हैं। इसके बाद मंदिरों में प्रसाद मिलता है। बहुत सारे शहरों और गांवों में भगवान राम और सीता मां की रथ यात्रा भी निकालने की परंपरा रही है। इस यात्रा में रथ पर लक्षमण और हनुमान जी भी विराजमान रहते हैं।