द्वापर युग में बाणासुर यहां आकर करते थे पूजा
भोजपुर जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित बाबा लंगट नाथ का मंदिर का इतिहास हजारों हजार वर्ष पुराना है द्वापर युग में बाणासुर यहां आकर इनकी पूजा किया करता था और यह शिवलिंग खुद अवतरित हुआ शिवलिंग माना जाता है। पहले यहां काफी घना जंगल हुआ करता था। इस बीच में बाबा लंगोट नाथ की पूजा करने रोज बाणासुर यहां पहुंच करता था वही पुरानी मान्यताओं के अनुसार भक्त प्रह्लाद के बड़े और महात्मा बाली के 100 पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र बाणासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसकी राजधानी सोनितपुर में वास किया, जो वर्तमान में भोजपुर जिले के मसाड गांव के नाम से विख्यात है।
इस मंदिर का नाम क्यों पड़ा लंगट नाथ
प्रकृति के सुरम में वातावरण में पेड़ पौधों के बीच अवस्थित इस मंदिर के बगल में बाणासुर के द्वारा निर्मित किया गया पोखर भी स्थित है बताया जाता है कि पुराने जमाने में जीरो खरवार राजाओं ने भी इनकी उपासना की थी। कार्य साथ रेलवे स्टेशन के समीप अवस्थित 52 बीघा के क्षेत्र में फैले इस तालाब से 5 किलोमीटर की दूरी पर बाबा लंगट नाथ का भव्य मंदिर है। आस्था एवं विश्वास के प्रतीक के रूप में शिवलिंग हजारों वर्ष तक नग्न अवस्था में पड़ा होने के कारण इनका नाम लंगट नाथ पड़ गया, वैसे तो इस मंदिर को मनोकामना धाम के रूप में भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से इसे मुराद मांगते हैं वह जरूर पूरी होती है, तभी तो सालों भर यहां लोगों की भारी भीड़ लगी रहती है लेकिन सावन और वैशाख के महीने में सोमवारी और शिवरात्रि को लाखों की संख्या में लोग यहां पहुंचकर इनका जलाभिषेक करते हैं।
भोलेनाथे के चमत्कार के लिए है प्रसिद्ध
स्थानीय लोगों की मानें, तो यह आलौकिक धाम अपने आप में काफी अद्भुत और सुंदर है लेकिन सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण मंदिर तक पहुंचाने के लिए कोई सुगम रास्ता नहीं है, जिसके कारण श्रद्धालु भक्तों को पैदल चलकर वहां मंदिर में पहुंचना पड़ता है जिसके कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सुनसान और निर्जन स्थान पर अवस्थित बाबा के इस मंदिर को इधर-उधर स्थापित करने का प्रयास लोगों के द्वारा सैकड़ों वर्ष शुरू किया गया था लेकिन यह सफल नहीं हो पाया, जिसके कारण स्थानीय आसपास के गांव के लोगों ने मंदिर को बनवाया और अब लोग यहां पहुंचकर भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित करते हैं।