सद्गुरु स्वामी आनंदजी
शक्ति जीवन का मेरुदंड है, लिहाजा शक्ति उपासना का प्रचलन अनादि काल से हमारी परंपरा में घुला-मिला है। नवरात्र पर शक्ति के संचयन हेतु मार्कण्डेय पुराण के सात सौ श्लोकों का सस्वर पठन किया जाता है, जिसे देवी पाठ या चंडी पाठ कहा जाता है। चंडीपाठ दरअसल सिर्फ निवेदन या प्रशंसा का यशोगान न होकर, प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के वो सात सौ श्लोक हैं, जो स्वयं में ऐसे वैज्ञानिक फॉर्म्युला प्रतीत होते हैं। ये शब्द संयोजन अपनी ध्वनि से रासायनिक क्रिया करके आंतरिक शक्ति के अनंत विस्तार की क्षमता रखते हैं। मानसिक बल के विस्तार और उसके रासायनिक गठजोड़ से अनेकानेक असंभव प्रतीत होने वाले कर्म भी संभव हो सकते हैं।
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क्या है देवी पाठ
चंडीपाठ के रूप में यह फॉर्म्युला यानि समस्त सात सौ श्लोक अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में बंधे हुए हैं। इसके सप्त शत मंत्रों में से हर मंत्र अपने चौदह अंगों के तानों-बानों में बुना है, जो इस प्रकार हैं- ऋषि, देवता, बीज, शक्ति, महाविद्या, गुण, ज्ञानेंद्रिय, रस, कर्मेंद्रिय स्वर, तत्व, कला, उत्कीलन और मुद्रा।
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विकास की प्रतीत होती है पद्धति
माना जाता है कि संकल्प और न्यास के साथ इसके उच्चारण से हमारे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन होता है, जो आत्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को फलक पर पहुंचाने की कूवत रखता है। मान्यताएं इसे अपनी आंतरिक ऊर्जा के विस्तार के लिए विलक्षण मानती हैं। चंडीपाठ फलक पर बैठी किसी देवी की उपासना से ज्यादा स्वयं की दैविक ऊर्जा के संचरण यानि विकास और विस्तार की पद्धति प्रतीत होती है।
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इतिहास रहा है गवाह
धार्मिक और ऐतिहासिक कथाएं विजय और शक्ति प्राप्ति के लिए देवी उपासना और चंडीपाठ का बखान करती हैं। कहा जाता है कि विजयश्री के सूत्र प्राप्त करने के लिए श्रीराम नें ऊर्जा के रूपांतरण की सस्वर पद्धति अपनाई, जिसे देवी स्तुति कहते हैं। मान्यता है कि श्रीरामचंद्र ने शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा को समुद्र तट पर सस्वर चंडीपाठ किया। तृतीया तिथि से युद्ध आरंभ हुआ और दशमी को दशानन की बहत्तर करोड़ सैनिकों वाली सेना को पराभूत कर विजयश्री हासिल की थी। मुमकिन है कि ध्वनि संयोजन से ऊर्जा को रूपांतरित करने की इसी वैज्ञानिक विधि को विकसित करके भारत ने ऐतिहासिक पन्नों में वर्णित अकूत समृद्धि का वरण किया होगा।