सीता माता के जन्म की कहानी
महर्षि वाल्मिकी रामायण के अनुसार जब मिथिला राज्य में अकाल पड़ गया था, तो राजा जनक को ऋषियों ने यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि उनका अगर राजा जनक यज्ञ करके वर्षा का आह्मन करेंगे, तो उनके कष्ट जरूर दूर हो जाएंगे। यज्ञ की समाप्ति के अवसर पर राजा जनक अपने हाथों से हल जोत रहे थे कि अचानक उनके हाथ हल से कोई धातु की चीज टकराने की आवाज आई। हल के जिस नुकीले भाग को सीत कहा जाता है, यह धातु उसी से टकराई थी। राजा जनक के हल का सीत वहीं अटक गया। यह देखकर हल को निकालने के प्रयास में उस जगह को खोदकर देखा गया।
कलश से निकली एक सुंदर शिशु कन्या
जब इस जगह की खुदाई की गई थी, तो धरती में से एक कलश निकला, निसमें एक सुंदर शिशु कन्या थी। राजा जनक ने उस कन्या को कलश से बाहर निकाला और उस शिशु कन्या को अपनी पुत्री मानकर गले से लगा लिया। निसंतान राजा जनक और उनकी पत्नी इस कन्या को लेकर बहुत प्रसन्न हुई। जब इस कन्या का नाम रखने की बारी आई, तो इसका नाम सीता रखा गया क्योंकि हल के सीत से कलश टकराया था। वहीं, इस राजा जनक ने इस पुत्री को अपना नाम दिया था, इसलिए सीता माता को जानकी भी कहा जाता है।
वर्तमान में कहां है वो स्थान जहां माता सीता कलश में प्रकट हुईं थीं
मिथिला की जिस जगह सीता माता कलश में प्रकट हुई थीं। वर्तमान में यह जगह अब सीतामढ़ी का पुनौरा धाम है। पुनौरा से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर जानकी स्थान मंदिर है, जहां यह मान्यता है कि कलश से निकलने के बाद देवी सीता को यहां पर लाया गया था और उन्हें स्नान कराया गया था। जनक जी ने यहीं पर देवी सीता को रखा था। बाद में इस कन्या को जनकपुर में अपनी राजधानी ले गए। वहां जाकर इस सुंदर शिशु कन्या का नाम सीता रखा गया।
देवी सीता के जन्म की एक और प्रचलित कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार वेदवती नाम की सुंदर कन्या भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण अपने पुष्पक विमान से भ्रमण करने के लिए हिमालय पर आया। वहां उसकी नजर तपस्या कर रही वेदवती पर पड़ी, उसके मन में वेदवती से विवाह का विचार आया। वेदवती रावण से बचने के लिए ऊंचाई से कूद गईं और मृत्यु के समय वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि वो अगले जन्म में रावण की पुत्री बनेंगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी। इसके बाद जन्म जब रावण की पत्नी मंदोदरी से एक कन्या का जन्म हुआ, तो अपनी मृत्यु के भय से रावण ने उसे धरती पर एक कलश में रखकर गाड़ दिया। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आगे जाकर यही कन्या माता सीता के रूप में रावण के विनाश का कारण बनी।
माता सीता की विशेषताएं
माता सीता के चरित्र को शब्दों में लिख पाने का प्रयास करना भी बहुत ही जटिल कार्य है। माता सीता का स्वभाव से जितनी कोमल, मृदुभाषी और धैर्यशील थी, समय पड़ने पर उन्होंने अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए चंडी का रूप भी धारण कर लिया। श्रीराम के साथ माता सीता महल में राजसी ठाट-बाट के साथ भी रहीं और उन्होंने वनवास में रहकर अभावों में भी जीवन बिताया लेकिन उन्होंने कभी भी धैर्य नहीं खोया। रावण जब माता सीता का अपहरण करके ले गया, तो उन्होंने रावण के सामने हार नहीं मानी और अपने पतिव्रता धर्म पर अडिग रहीं। उन्होंने रावण की दुष्टता का विरोध किया और उसके छल को भी समझा। आखिर में जब श्रीराम ने लक्ष्मण द्वारा उन्हें वन में छोड़ आने को कहा, तो माता सीता ने लव-कुश को अकेले ही पाला और अंत में राम के पास वापस लौटने के स्थान पर अपने आत्मसम्मान के लिए धरती माता की गोद में समा गईं।