Story of Holi: होली पर हल्ला और शोर मचाने की परंपरा क्यों, जानें होली की 6 रोचक कहानियां

कहानी राधा-कृष्‍ण की

हमारे देश के ब्रज क्षेत्र, यानी म‍थुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव के आराध्‍य देवता भगवान कृष्‍ण और राधा की प्रेम कहानी को भी होली से जोड़कर देखा जाता है। बसंत ऋतु में रंग खेलना भगवान कृष्‍ण की लीलाओं में से एक माना गया है। वहीं रंगों के त्‍योहार से एक दिन पहले रात में होलिका दहन को बुराई पर अच्‍छाई की जीत और अहं के अंत के रूप में देखा जाता है।

शिव-पार्वती और कामदेव

शिव-पार्वती और कामदेव

पुराणों में इस बात का वर्णन मिलता है कि देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। परंत भगवान शिव इस बात से अंजान अपनी तपस्‍या में लीन थे। ऐसे में कामदेव ने पार्वती की मदद करने की मंशा से शिव की तपस्‍या भंग कर दी। क्रोध में आकर शिवजी ने कामदेव को भस्‍म कर दिया। फिर जब शिव ने पार्वती को देखा तो उन्‍हें अपनी पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार कर लिया। मगर पति की मौत से दुखी कामदेव की पत्‍नी रति के भगवान शिव से प्रार्थना करने पर प्रभु ने उन्‍हें जीवित कर दिया, तब से रंगों का त्‍योहार मनाया जाने लगा।

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भक्‍त प्रह्लाद और होलिका

भक्‍त प्रह्लाद और होलिका

भक्‍त प्रह्लाद की भगवान विष्‍णु के प्रति भक्ति को देखकर उनके नास्तिक पिता हिरणकश्‍यप ने उसे अपनी बहन होलिका के हाथों मरवाना चाहा। लेकिन हुआ इसका उल्‍टा। बुराई पर अच्‍छाई की जीत हुई। होलिका जलकर राख हो गई और भक्‍त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हो सका।

कंस और पूतना की कहानी

कंस और पूतना की कहानी

माता देवकी की कोख से भगवान कृष्‍ण के जन्‍म लेने के बाद आकाशवाणी हुई थी कि कंस का अंत कृष्‍ण के हाथों ही होगा। उसके बाद से कंस कृष्‍ण को मरवाने के लिए हर वक्‍त कोई न कोई चाल ही चलता रहता था। इसी क्रम में उसने राक्षसी पूतना से मदद मांगी। पूतना ने जब सुंदरी स्‍त्री का वेश धरकर पालने में लेटे कन्‍हैया अपना विषैला स्‍तनपान कराने का प्रयास किया तो कृष्‍ण उसकी सच्‍चाई को समझ गए और उसका वध कर दिया। उस दिन फाल्‍गुन पूर्णिमा थी। तब से पूतना के वध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

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राक्षसी ढुंढी और होली पर हल्‍ला मचाने की परंपरा

राक्षसी ढुंढी और होली पर हल्‍ला मचाने की परंपरा

ऐसी लोककथा है कि भगवान राम के पूर्वज महाराज रघु के समय में ढूंढी नाम की एक राक्षसी थी। वह बच्‍चों की हत्‍या करके खा जाती थी। उसे वरदान प्राप्‍त था कि उसे कोई देवता, मानव, अस्‍त्र, शस्‍त्र और न ही सर्दी, गर्मी बरसात मार सकती हैं। राजा रघु के राज पुरोहित ने उसे मारने के लिए उपाय सुझाया। उन्‍होंने कहा कि फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा पर जब न अधिक सर्दी हो और न अधिक गर्मी हो, सब बच्‍चे अपने घर से लकड़ियां लाकर जलाएं। ऊंचे स्‍वर में देवताओं के मंत्र पढ़ें और खूब हल्‍ला मचाएं और शोरगुल करें तो इस राक्षसी को मारा जा सकता है। बच्‍चों ने ऐसा ही किया और हल्‍ला-गुल्‍ला सुनकर जब राक्षसी वहां पहुंची तो बच्‍चों ने उस पर धूल-कीचड़ उछालकर और गंदगी फेंककर उसे नगर से बाहर खदेड़ दिया। इस प्रकार उसका अंत हुआ और तब से होली पर हल्‍ला मचाने की पंरपरा शुरू हो गई।

होलिका और इलोजी की कहानी

होलिका और इलोजी की कहानी

हम सभी जानते हैं कि अपने भतीजे प्रह्लाद को जलाने की मंशा से आग में बैठी होलिका खुद जलकर खाक हो गई। दरअसल होलिका इलोजी नामक राजकुमार से प्रेम करती थी और फाल्‍गुन पूर्णिमा के दिन दोनों विवाह करने वाले थे। हिरण्‍यकश्‍यप ने होलिका से जब प्रह्लाद को जलाने की बात कही, तो पहले वह तैयार नहीं हुई। फिर हिरण्‍यकश्‍यप ने इलोजी से विवाह ने कराने की धमकी दी तो होलिका प्रह्लाद को जलाने के लिए तैयार हो गई। होलिका ने आदेश का पालन किया और चिता पर प्रह्लाद को लेकर बैठ गई। लेकिन चुपके से प्रह्लाद को अग्निदेव के वरदान से बचा लिया और खुद जलकर खाक हो गई।

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