शास्त्रों के अनुसार सभी कार्यों की निर्विघ्नता पूर्ण सम्पन्नता के लिए गणेश जी की आराधना का विधान है। कोई भी पूजा गणेश जी के बिना अधूरी समझी जाती है। वास्तु के पंचतत्व आकाश, पृथ्वी, जल, वायु तथा अग्नि से मिल करके ही मानव शरीर का निर्माण हुआ है। गणेश जी की प्रतिमा का प्रयोग वास्तु शास्त्र में पंचतत्व के समन्वय एवं विघ्नों का नाश कर शुभता के लिए किया जाता है।
नाना प्रकार की विधाओं में वास्तु शास्त्र के अंतर्गत गणेश जी का पूजन किया जाता है। चीन देश का वास्तु शास्त्र, फेंगशुई और रंग विज्ञान का समायोजन भी गणेश की उपासना पर ही आधारित है, बागुआ गणपति इसका प्रतीक है जिसका उपयोग फेंगशुई के अंतर्गत किया जाता है। गणेश जी की प्रतिमा की सूंड़ कहीं दाई ओर तो कहीं बायीं की ओर घूमी मिलती है। बाई सूंड़ वाले गणेश जी सौम्य स्वरूप के परिचालक है।
इनकी पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है, आत्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है जबकि दांयी सूंड़ वाले गणेश जी से सांसारिक समृद्धि की प्राप्ति होती है। जब भी आप अपने घर-कार्यालय में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें तो किसी वास्तुशास्त्री से प्रतिमा की उंचाई, लम्बाई आदि विषयों की जानकारी लेकर ही शुभ मुहूर्त में गणेश जी को स्थापित करें।
- सामान्यतयः उगते सूर्य की तरफ, जिस भी घर के सामने गणेश जी की प्रतिमा लगी होगी वहां प्रायः वास्तु दोष नहीं होता।
- टायलेट की जगह कभी भी गणेश जी की प्रतिमा न लगायें, ऐसी जगह कभी भी गणेश जी न लगायें जहां लोग थूकते हों।
- यदि घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा लगाया है तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह गणेश जी की प्रतिमा इस प्रकार लगायें कि दोनों की पीठ मिली रहे। अगर मकान का मुख्य द्वार का मुंह दक्षिण दिशा की ओर है तो गणेश जी की सूंड़ दाहिने तरफ होनी चाहिए।
- सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए बुधवार को भगवान गणेश को मोदक, 21 दूब, सिन्दूर, तथा पुष्प आदि चढ़ायें, तुलसी जी भूल करके नहीं चढ़ाना चाहिए, हो सके तो हाथी तथा चूहों को लड्डू खिलायें।