माता सीता का पूर्वजन्म है वेदवती
उत्तराखंड के चांई गांव में माता सीता का बहुत पुराना मंदिर है और यहां माता सीता की पूजा वेदवती कन्या के रूप में की जाती है। मान्यता है कि वेदवती ही, माता सीता का पूर्वजन्म है। यहां वेदवती की पूजा सफेद पत्थर के शिला के रूप में की जाती है। मंदिर के पुजारी रघुनंदन बताते हैं कि वेदवती माता लक्ष्मी का ही अवतार थीं और उनका जन्म राजा कुशध्वज और मालावती के यहां हुआ था। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही वेदवती को वेदों का ज्ञान प्राप्त होना शुरू गया था इसलिए इनका नाम वेदवती रखा गया।
भगवान विष्णु की थीं परम भक्त
वेदवती भगवान विष्णु की परम भक्त थीं और जैसे जैसे वेदवती की उम्र बढ़ती गई, भगवान विष्णु के प्रति उनका प्रेम बढ़ता गया। वेदवती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान विष्णु के साथ हो। इसके लिए उन्होंने हिमालय पर तपस्या शुरू की। एक दिन जब वेदवती ध्यान में लीन थीं, तब उधर से गुजरते हुए लंकापति रावण की नजर उन पर पड़ी। उनकी सुंदरता पर मोहित रावण ने वेदवती को जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहा।
रावण को दिया शाप
पवित्रता को भंग करने की कोशिश करने पर वेदवती ने रावण को शाप दिया कि एक दिन वह उसकी मृत्यु कारण बनेगी। बाद में स्वयं को रावण से बचाने के लिए वेदवती ने अग्नि में कूद पड़ीं और खुद को भस्म कर लिया। वैसे एक मान्यता यह है कि वह रावण से खुद को बचाने के लिए पर्वत से कूद गईं। रावण के कारण वेदवती अपने आराध्य भगवान विष्णु को नहीं पा सकीं, उनकी तपस्या अधूरी रही। वेदवती का शाप खाली ना जाए, इसलिए उन्होंने मिथिला नरेश राजा जनक के यहां जन्म लिया। इस तरह से फिर रामायण शुरू हुई और माता सीता के रूप में वह खुद रावण के विनाश का कारण बनीं।
पहाड़ों और जंगलों से घिरा है मंदिर
चांई के लिए यह साल बहुत अच्छा रहा है क्योंकि इस बार गांव देवी देवता त्योहार के मौके पर बाहर निकले और पिछली बार की तरह जोशीमठ से बुरी खबरें नहीं आ रही थीं। चांई उत्तराखंड के चमोली जिले में, जोशीमठ के ठीक सामने वाले पहाड़ पर बसा है। चारों तरफ पहाड़ और जंगलों से घिरा होने की वजह से प्रकृति बेहद सुंदर रूप देखने को मिलता है। साथ ही यहां की स्वच्छ हवा और पानी मंत्रमुग्ध करता है।
दिलचस्प है डिमरी का इतिहास
यह सीता मंदिर बद्रीनाथ मंदिर समिति के तहत आता है और इसी समिति के जरिए ही मंदिर में पुजारी रखे जाते हैं। रघुनंदन अपने नाम के साथ जो डिमरी टाइटल लगाते हैं, वह दरअसल उनका पद भी है। यहां पुजारी को डिमरी कहा जाता है। रघुनंदन बताते हैं कि बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी को रावल कहा जाता है। उन्हीं रावल की सहायता के लिए केरल से और भी ब्राह्मण आए थे। तब आना-जाना इतना आसान नहीं था, तो वे ब्राह्मण कर्णप्रयाग के डिम्मर गांव में बस गए। उस जगह की वजह से उन्हें नाम मिल गया डिमरी। फिलहाल तो उनकी आबादी कई गांवों में फैल चुकी है। रघुनंदन खुद जोशीमठ के रविग्राम के रहने वाले हैं। जोशीमठ के ऊपर जितने भी मंदिर हैं, उन सभी में डिमरी ब्राह्मणों की तैनाती होती है।