Vijayadashami 2022 : विजयादशमी पर इस बार इन अमानवीय दुर्गुणों पर प्राप्त करनी है विजय, जानें विजयादशमी का महत्व

Durga Puja 2022: भारत भूमि में प्रत्येक अश्विन मास की शुक्ल पक्षीय दशमी तिथि को मनाया जाने वाला विजयादशमी पर्व यहां के मुख्य पर्वों में से अन्यतम है। वाल्मिकी रामायण, रामचरितमानस, कालिका उपपुराण और अन्य अनेक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के साथ इस पर्व का गहरा संबंध है। विद्वानों के अनुसार, रामजी ने अपनी विजय यात्रा इसी तिथि को आरंभ की थी, इसलिए विजय यात्रा के लिए यह पर्व शास्त्रसम्मत माना जाता है।

आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो नाम सर्वकार्यार्थ साधकः।।


ग्रह-नक्षत्र का बनता है संयोग

भारतीय काल गणना के अनुसार, इसका आरंभ आज से लगभग नौ लाख वर्ष पूर्व सिद्ध होता है। ज्योतिष के अनुसार, इस समय में ऐसे ग्रह-नक्षत्रों का संयोग होता है, जिससे विजय यात्रा का श्रीगणेश करने पर विजय यात्री को जय की प्राप्ति होती है। विजयादशमी पर्व आज भी अपने अनेक शाश्वत मूल्यों के कारण प्रासंगिक है, क्योंकि इनके मूल्य कालजयी हैं। इनसे मानव जाति को व्यापक लाभ की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही संपूर्ण विश्व अनंत काल तक इससे सतत प्रेरणा भी ग्रहण करता रहेगा।

युद्ध के बाद राम ने कभी आधिपत्य नहीं किया

श्रीराम द्वारा रावण पर विजय दैवी एवं मानवीय गुणों- सत्य, नैतिकता तथा सदाचार की राक्षसी एवं अमानवीय दुर्गुणों- अनैतिकता, असत्य, दंभ, अहंकार और दुराचार पर विजय है। यह पर्व न्याय की जीत एवं नारी जाति के अपमानकर्ताओं का संहारक है। यह विजय यात्रा मात्र लंका या रावण पर की जाने वाली राजनीतिक विजय भर नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म एवं मानवीय मूल्यों की संरक्षणात्मक पद्धति का शिलान्यास है। यह लोभ, हृदयहीनता, मोह, द्रोह, मद, मत्सर एवं निर्दयता का निकंदन भी है। इस विजय के पश्चात् प्राप्त किसी भी राज्य पर श्रीराम ने कभी स्वयं आधिपत्य नहीं रखा, वरन उन्होंने रावण का राज्य विभीषण एवं बाली का राज्य उनके भ्राता सुग्रीव को लौटा दिया। दशहरा के नाम से प्रख्यात यह बेला अकारण तथा निरपराध लोगों को रुलाने वाले रावण के अहंकार रूपात्मक दस सिरों और पौरुष की दुरुपयोगिनी बीस भुजाओं के विनाश की प्रतीक है।

विजयदशमी पर ऋतु चक्र हो जाता है सुहावना
विजयदशमी की पूर्वपीठिका का आरंभ जगजननी जगदम्बिका की आराधनात्मक अश्विन शुल्क पक्ष की प्रतिपदा से ही हो जाता है, जिसे शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। नौ दिनों तक आराधना, अर्चना तथा नियमित सेवादि व्रतों से जन्य शक्ति-संचय का मानो उद्देश्य ही यही होता है कि उस शक्ति की समुचित, संचित राशि के द्वारा सुमति से कुमति, मैत्री द्वारा निर्दयता और रिपुता (वैर भाव) को सरलता से जीता जा सके। इस पर्व के पूर्व बरसात के कारण राजाओं की यात्राएं और चतुर्मास्य के कारण संन्यासियों के आवागमन स्थगित होते हैं, किन्तु अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के आते-आते मार्ग सुगम हो जाते हैं। स्वच्छ अंबर में पवन-संयोग के कारण मेघ बलाहक पक्षी की भांति उड़ने लगते हैं। ऋतु चक्र सुहावना हो जाता है। शस्यश्यामला धरती फलीभूत हो कृषक के गृह को समृद्ध बना देती है।

इन पर विजय पाने की आवश्यकता
आज विजयादशमी की प्रासंगिकता और बढ़ती जा रही है, क्योंकि वर्तमान में रावण, खरदूषण, बाली और कुंभकर्ण देखे जा सकते हैं। आज जाने कितनी सीताएं प्रतिदिन अग्नि की भेंट चढ़ रही हैं। जीवन मूल्यों, पशु-पक्षी, वन-उपवनों, पर्वत-सागर, आचार-विचार सभी पर खतरे मंडरा रहे हैं। मनु, अग्नि, जमदाग्नि, गीता, रामायण, वेदों के देश में द्रौपदियों की लज्जा दांव पर है। अतः आज के परिवेश में इन पर विजय की आवश्यकता है और इन्हीं अर्थों में विजयदशमी सार्थक है।– आचार्य कृष्णदत्त शर्मा